Bastar rape case -रायपुर/जगदलपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में CAF (छत्तीसगढ़ आर्म्ड फोर्स) के जवान को दुष्कर्म के आरोप से बरी कर दिया है। अदालत ने कहा कि यह मामला जबरन रेप का नहीं, बल्कि आपसी प्रेम और सहमति का संबंध था।
न्यायमूर्ति नरेश कुमार चंद्रवंशी की एकलपीठ ने फास्ट ट्रैक कोर्ट, बस्तर (जगदलपुर) द्वारा 21 फरवरी 2022 को सुनाई गई 10 साल की सजा और 10 हजार रुपए के जुर्माने के फैसले को रद्द कर दिया है।
अदालत ने कहा – यह प्रेम संबंध था, न कि झूठे विवाह वादे पर आधारित रेप
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पीड़िता बालिग थी और लंबे समय तक अपनी मर्जी से आरोपी के साथ रही।
दोनों के बीच शारीरिक संबंध आपसी सहमति से बने थे, इसलिए इसे दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता। अदालत ने माना कि यह मामला प्रेम संबंध का था, न कि झूठे वादे या धोखे पर आधारित यौन शोषण का।
क्या है पूरा मामला?
बस्तर जिले के रहने वाले रूपेश कुमार पुरी (25) के खिलाफ साल 2020 में एक युवती ने दुष्कर्म की शिकायत दर्ज कराई थी।
शिकायत के अनुसार, युवती की शादी 28 जून 2020 को किसी अन्य युवक से तय थी, लेकिन एक दिन पहले यानी 27 जून 2020 को रूपेश उसे अपने घर ले गया और शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाए।
आरोप था कि रूपेश ने युवती को दो महीने तक अपने घर में रखा और फिर धमकाकर भगा दिया। जब उसने शादी से इनकार किया, तो युवती ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई।
पुलिस ने रूपेश के खिलाफ धारा 376(2)(N) के तहत मामला दर्ज किया। इसके बाद फास्ट ट्रैक कोर्ट जगदलपुर ने 2022 में उसे 10 साल की सजा सुनाई थी।
अपील और बचाव पक्ष का तर्क
सजा के खिलाफ रूपेश पुरी ने हाईकोर्ट में अपील दायर की। उसके वकील ने तर्क दिया कि दोनों एक ही गांव के रहने वाले हैं और 2013 से प्रेम संबंध में थे।
वकील ने कहा कि पहले भी युवती ने रूपेश पर छेड़छाड़ का मामला दर्ज कराया था, जिसमें वह बरी हो गया था। बाद में दोनों फिर से साथ आए और युवती अपनी मर्जी से उसके घर गई थी।
बचाव पक्ष ने कहा —
“यह मामला प्रेम संबंध का है, न कि दुष्कर्म का। यदि शादी नहीं हो पाई तो इसे झूठे वादे के तहत सहमति नहीं कहा जा सकता।”
वकील ने यह भी बताया कि आरोपी CAF जवान था और ड्यूटी पर रहने के कारण कुछ समय घर से दूर रहता था। इसी बीच दोनों परिवारों में विवाद हुआ और परिजनों के दबाव में FIR दर्ज कराई गई।
⚖️ पीड़िता की ओर से पेश तर्क
युवती की ओर से सरकारी पैनल वकील ने कहा कि आरोपी ने शादी का झांसा देकर दो महीने तक उसका यौन शोषण किया और बाद में छोड़ दिया।
उन्होंने दलील दी कि आरोपी ने युवती को जानबूझकर धोखा दिया और शादी से मुकर गया।
हाईकोर्ट ने सबूतों और गवाहियों का परीक्षण किया
अदालत ने गवाहों और साक्ष्यों का विस्तार से परीक्षण करते हुए पाया कि
दोनों के बीच 2013 से प्रेम संबंध था।
युवती ने खुद अदालत में स्वीकार किया कि उसने फेसबुक पर रूपेश को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी थी और उनके बीच लगातार बातचीत होती थी।
युवती ने यह भी कहा कि अगर आरोपी के माता-पिता उसे परेशान न करते, तो वह FIR दर्ज नहीं कराती।
यहां तक कि पीड़िता के माता-पिता ने भी कहा कि अगर आरोपी का परिवार ठीक व्यवहार करता, तो वे रिपोर्ट नहीं करते।
मेडिकल और FSL रिपोर्ट में भी दुष्कर्म के कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले।
हाईकोर्ट ने कहा – पीड़िता खुद गई थी आरोपी के घर
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा —
“यह मामला जबरन यौन शोषण का नहीं, बल्कि आपसी प्रेम और सहमति का है। पीड़िता खुद आरोपी के घर गई, उसके साथ रही और बार-बार संबंध बनाए। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी ने झूठे वादे से उसे धोखा दिया।”
न्यायमूर्ति नरेश कुमार चंद्रवंशी ने सुप्रीम कोर्ट के कई हालिया निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि,
“सिर्फ शादी का वादा पूरा न होना अपने आप में दुष्कर्म नहीं माना जा सकता, जब तक यह साबित न हो कि आरोपी का शुरू से ही शादी करने का इरादा नहीं था।”
इसी आधार पर अदालत ने कहा कि यह मामला सहमति आधारित संबंध का है और ट्रायल कोर्ट का फैसला गलत था।
CAF जवान रूपेश बरी
इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने फास्ट ट्रैक कोर्ट जगदलपुर का फैसला रद्द करते हुए आरोपी रूपेश कुमार पुरी को सभी आरोपों से बरी कर दिया।
इस फैसले के साथ अदालत ने साफ कर दिया कि हर सहमति आधारित संबंध को अपराध की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता।
