
Principal Promotion Verdict: हाईकोर्ट कल सुनाएगा फैसला, 3000 पदोन्नत शिक्षकों की सांसें अटकी
रायपुर, 30 जून 2025:
छत्तीसगढ़ में प्राचार्य पदोन्नति से जुड़ी बहुप्रतीक्षित न्यायिक प्रक्रिया अब अपने अंतिम मोड़ पर है। 1 जुलाई को हाईकोर्ट के कोर्ट नंबर 11 में इस मामले में फैसला सुनाया जाएगा। हजारों शिक्षकों की नजरें अब कोर्ट के इस ऐतिहासिक निर्णय पर टिकी हुई हैं।
क्या है पूरा मामला?
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30 अप्रैल 2025 को 3000 से अधिक प्राचार्यों की पदोन्नति के आदेश शिक्षा विभाग द्वारा जारी किए गए थे।
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यह आदेश उस समय विवाद में आ गया जब यह पाया गया कि कोर्ट में सरकार की ओर से पहले यह भरोसा दिलाया गया था कि फैसला आने तक प्रमोशन प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ेगी।
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लेकिन, सुनवाई से ठीक एक दिन पहले यह आदेश जारी कर दिया गया, जिससे कोर्ट में नाराजगी जाहिर की गई।
कोर्ट में अवमानना मामला भी उठा था
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प्रमोशन आदेश जारी करने पर कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की गई थी, जिसे बाद में हटा लिया गया।
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इसके बाद कोर्ट ने 11 जून से 17 जून तक लगातार सुनवाई की, जिसमें 12 याचिकाओं को क्लब कर सुनवाई की गई।
फैसला सुरक्षित, अब 1 जुलाई को सुनवाई पूरी
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सभी पक्षों को पर्याप्त समय देने के बाद, 17 जून को कोर्ट ने निर्णय सुरक्षित रख लिया था।
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अब 1 जुलाई को यह बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाया जाएगा, जिससे हजारों शिक्षकों का भविष्य तय होगा।
प्राचार्य पदोन्नति फोरम की सक्रिय भूमिका
इस मामले में प्राचार्य पदोन्नति फोरम ने फोरम अध्यक्ष अनिल शुक्ला के नेतृत्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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डीपीसी के बाद जब पदोन्नति आदेश में देरी हो रही थी, तब फोरम की सक्रियता के कारण सूची शिक्षा विभाग को भेजी गई।
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फोरम के अन्य सक्रिय सदस्यों में आर.के. बंजारे, विकास नायक, आकाश राय, एस.के. चिंचालकर और एस.एन. पैकरा शामिल हैं।
अनिल शुक्ला ने कहा—
“न्यायिक प्रक्रिया के कारण भले ही विलंब हुआ हो, लेकिन अब न्याय की घड़ी आ चुकी है। हमें उम्मीद है कि फैसला शिक्षकों के पक्ष में आएगा।”
क्या हो सकता है असर?
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अगर कोर्ट प्रमोशन आदेश को वैध ठहराता है, तो 3000 से अधिक शिक्षकों को नई जिम्मेदारियां दी जाएंगी।
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यदि आदेश रद्द हुआ, तो सरकार को पूरी प्रक्रिया पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।
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शिक्षकों में उत्सुकता और तनाव दोनों चरम पर हैं।
निष्कर्ष:
प्राचार्य प्रमोशन मामला अब सिर्फ एक प्रशासनिक आदेश नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के शिक्षा विभाग की विश्वसनीयता और पारदर्शिता की परीक्षा बन गया है। 1 जुलाई को आने वाला फैसला न केवल शिक्षकों के भविष्य को दिशा देगा, बल्कि आगे की सरकारी निर्णय प्रक्रिया की पारदर्शिता को भी परिभाषित करेगा।
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