
President Questions Supreme Court Decision
President Questions Supreme Court Decision:
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जताई आपत्ति, संवैधानिक अधिकारों और प्रक्रिया पर उठाए गंभीर सवाल
नई दिल्ली, 15 मई 2025: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 8 अप्रैल को सुनाए गए ऐतिहासिक फैसले को लेकर गंभीर आपत्ति दर्ज कराई है। इस फैसले में न्यायालय ने राज्यपालों और राष्ट्रपति के समक्ष लंबित विधेयकों के निपटारे हेतु समय-सीमा निर्धारित की थी। राष्ट्रपति ने इस निर्णय को संविधान की मूल भावना, संघीय ढांचे और संवैधानिक संतुलन के खिलाफ बताया है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राष्ट्रपति की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि राज्यपाल किसी भी विधेयक पर अधिकतम तीन महीने में फैसला लें — या तो उसे स्वीकृति दें या पुनर्विचार हेतु विधानसभा को लौटा दें। यदि विधानसभा पुनः विधेयक पारित करती है, तो राज्यपाल को एक महीने के भीतर उसकी मंजूरी देनी होगी। यदि विधेयक राष्ट्रपति के पास भेजा गया हो, तो राष्ट्रपति को भी तीन महीने के भीतर निर्णय देना होगा।
राष्ट्रपति मुर्मू ने इस फैसले को संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन करार देते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 में ऐसी कोई समय-सीमा नहीं निर्धारित की गई है। उनके अनुसार, राष्ट्रपति और राज्यपाल के पास निर्णय लेने के लिए विवेकाधिकार होता है, जो बहुआयामी विचारों जैसे कानूनों की एकरूपता, राष्ट्रीय सुरक्षा, और संघीय संरचना को ध्यान में रखते हुए लिया जाता है।
“मंजूरी प्राप्त मानी जाएगी” की अवधारणा पर असहमति
न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि यदि विधेयक निर्धारित समय-सीमा तक लंबित रहता है, तो उसे “मंजूरी प्राप्त” माना जाएगा। राष्ट्रपति ने इस अवधारणा को संविधान विरोधी बताते हुए सिरे से खारिज किया। उन्होंने कहा कि यह राष्ट्रपति और राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों को सीमित करने का प्रयास है।
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब संविधान राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर निर्णय लेने का विवेकाधिकार देता है, तो न्यायपालिका उस प्रक्रिया में हस्तक्षेप कैसे कर सकती है।
अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय
राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से इस मुद्दे पर राय मांगी है। यह प्रावधान दुर्लभ परिस्थितियों में ही प्रयोग में लाया जाता है। राष्ट्रपति ने इस मार्ग को इसलिए अपनाया क्योंकि उन्हें लगता है कि यदि समीक्षा याचिका उसी पीठ के समक्ष दायर की गई जिसने मूल फैसला सुनाया है, तो न्यायसंगत पुनर्विचार की संभावना सीमित हो सकती है।
अनुच्छेद 142 पर भी सवाल
राष्ट्रपति ने न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 142 के अंतर्गत “पूर्ण न्याय” के लिए दिए गए निर्णयों की व्याख्या पर भी चिंता व्यक्त की। उनका मानना है कि जहां संविधान और कानून में स्पष्ट प्रावधान पहले से मौजूद हैं, वहां इस विशेषाधिकार का प्रयोग संवैधानिक संतुलन को प्रभावित कर सकता है।
अनुच्छेद 32 के प्रयोग पर आपत्ति
राष्ट्रपति मुर्मू ने यह भी उठाया कि राज्य सरकारें संघीय मुद्दों पर अनुच्छेद 131 (केंद्र और राज्य के बीच विवादों का समाधान) का प्रयोग करने के बजाय अनुच्छेद 32 (नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा) के तहत सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा क्यों खटखटा रही हैं। उन्होंने कहा कि यह प्रवृत्ति संविधान की संघीय व्यवस्था को कमजोर कर रही है, क्योंकि अनुच्छेद 131 का उद्देश्य विशेष रूप से राज्यों और केंद्र सरकार के बीच के संवैधानिक विवादों को सुलझाना है।