
High Court Judgment In Rape Case: 17 साल साथ रहना और 3 बच्चे होना सहमति का प्रमाण, रेप केस नहीं बनता – ट्रायल कोर्ट का आदेश निरस्त
रायपुर/रायगढ़। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि कोई महिला बालिग है और उसने स्वेच्छा से किसी पुरुष के साथ लंबे समय तक वैवाहिक संबंध की तरह जीवन बिताया है, तो उस परिस्थिति में इसे “दुष्कर्म” नहीं माना जा सकता। इस आधार पर हाईकोर्ट ने रायगढ़ के फास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा आरोपी को दोषी ठहराने के आदेश को खारिज कर दिया है।
यह फैसला हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनाया।
क्या था पूरा मामला?
बिलासपुर की रहने वाली एक महिला ने रायगढ़ के चक्रधर नगर थाना में एक युवक के खिलाफ साल 2019 में दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया था। महिला का आरोप था कि आरोपी ने 2008 में शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाए। आरोप यह भी था कि युवक ने उसका भरोसा जीतकर उसे किराए का मकान दिलवाया और साथ रहने लगा।
इस दौरान दोनों के तीन बच्चे भी हुए। लेकिन वर्ष 2019 में युवक रायपुर यह कहकर गया कि वह एक हफ्ते में लौटेगा, लेकिन वह वापस नहीं आया। जब महिला ने उसे कई बार वापस बुलाने की कोशिश की और कोई जवाब नहीं मिला, तब उसने दुष्कर्म का केस दर्ज कराया।
ट्रायल कोर्ट का फैसला और दस्तावेज़ी साक्ष्य
ट्रायल कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ धारा 376 (दुष्कर्म) के तहत आरोप तय किए। आरोपी ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी और बताया कि:
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महिला ने स्वयं को उसके दस्तावेजों (आधार, वोटर आईडी, गैस कनेक्शन, राशन कार्ड) में पत्नी के रूप में दर्ज कराया था।
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महिला ने वन स्टॉप सेंटर में भी आरोपी को पति बताया था।
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दोनों ने 17 वर्षों तक साथ रहकर सामाजिक रूप से पति-पत्नी का जीवन जिया।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा ने अपने आदेश में कहा कि:
“जब महिला बालिग है, और उसने लंबे समय तक आरोपी को पति मानते हुए सहमति से साथ रहकर संबंध बनाए हैं, तो इसे दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता।”
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसलों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि यदि संबंध लंबे समय तक सहमति से रहे हों और महिला ने आरोपी को सामाजिक दस्तावेजों में पति बताया हो, तो दुष्कर्म का मामला नहीं बनता।
नतीजतन, हाईकोर्ट ने फास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा 3 जुलाई 2021 को दिए गए दोष सिद्धि के आदेश को रद्द कर दिया।
यह फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि सहमति, संबंधों की प्रकृति और सामाजिक दस्तावेजों की भूमिका न्यायिक निर्णय में महत्वपूर्ण होती है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि सहमति से बने संबंधों को जबरदस्ती या धोखे की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, खासकर जब संबंध इतने लंबे समय तक चले हों और उसके परिणामस्वरूप संतान भी उत्पन्न हुई हो।
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