
What is the Kaveri Engine
Fund Kaveri Engine -कावेरी इंजन को फंड करो’ ट्रेंड: भारत की स्वदेशी एयरो इंजन तकनीक की ओर उम्मीद
26 मई को सोशल मीडिया पर ‘कावेरी इंजन को फंड करो’ (#FundKaveriEngine) हैशटैग तेजी से ट्रेंड हुआ। आम नागरिकों से लेकर रक्षा विशेषज्ञों और तकनीकी प्रेमियों ने एक स्वर में भारत की लंबे समय से चली आ रही लेकिन संसाधनों की कमी से जूझ रही कावेरी इंजन परियोजना के समर्थन में आवाज़ बुलंद की।
लोगों ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस परियोजना को प्राथमिकता देने और फंड जारी करने की मांग की। कुछ यूज़र्स ने मजाकिया अंदाज़ में लिखा, “कारामेल पॉपकॉर्न पर 18% की जगह 20% ले लो, बस कावेरी इंजन को फंड कर दो।” सोशल मीडिया पर सोवियत-शैली के पोस्टर तक शेयर किए गए।

कावेरी इंजन क्या है?

कावेरी इंजन परियोजना की शुरुआत 1980 के दशक के अंत में हुई थी। यह एक टर्बोफैन जेट इंजन है, जिसे बेंगलुरु स्थित गैस टरबाइन रिसर्च इस्टैब्लिशमेंट (GTRE) द्वारा विकसित किया जा रहा है, जो DRDO की एक प्रमुख प्रयोगशाला है। इसे मूल रूप से स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) तेजस के लिए विकसित किया जा रहा था।
हालांकि तेजस के पहले संस्करण में अमेरिका का GE F-404 इंजन लगाया गया, लेकिन कावेरी प्रोजेक्ट को कभी छोड़ा नहीं गया। अब इसका उपयोग भविष्य के पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट AMCA, यूसीएवी (मानवरहित लड़ाकू विमान) और नेवी प्लेटफॉर्म्स के लिए प्रस्तावित है।
इस इंजन की खासियतें
कावेरी इंजन एक दो-स्पूल बायपास टर्बोफैन इंजन है, जिसमें फुल एन्युलर कंबस्टर, ट्रांसोनिक कंप्रेसर, और डायरेक्शनली सॉलिडिफाइड टरबाइन ब्लेड्स जैसी उन्नत तकनीकें शामिल हैं। इस इंजन का 3000 घंटे से अधिक परीक्षण विभिन्न परिस्थितियों में किया जा चुका है। इसमें उच्च ऊंचाई पर परीक्षण और समुद्री प्लेटफॉर्म पर भी सफल परीक्षण शामिल हैं।
हाल ही में इसमें सिंगल क्रिस्टल ब्लेड, पॉलिमर मैट्रिक्स कंपोज़िट्स और स्टील्थ डिजाइन के अनुकूल नया फैन जोड़ा गया है, जिससे इसकी थ्रस्ट-टू-वेट रेशियो और थर्मल एफिशिएंसी बेहतर हुई है।

परियोजना में देरी क्यों हुई?
कावेरी इंजन तकनीकी रूप से अत्यधिक जटिल है। इसकी देरी का मुख्य कारण यही जटिलता है, जिसमें एयरोथर्मल डायनामिक्स, मेटलर्जी, कंट्रोल सिस्टम, और मैटेरियल साइंस जैसे क्षेत्रों में शून्य से शुरुआत करनी पड़ी।
इसके अलावा, पश्चिमी देशों ने कई अहम तकनीकों जैसे सिंगल क्रिस्टल ब्लेड और सुपर अलॉयज के ट्रांसफर से इंकार कर दिया, जिससे स्वदेशी विकास धीमा हुआ। परीक्षण सुविधाओं की कमी के कारण भारत को रूस जैसे देशों की प्रयोगशालाओं पर निर्भर रहना पड़ा, जिससे समय और लागत दोनों बढ़े।
शुरुआत में बिना किसी मिडस्टेप के इसे सीधे तेजस में लगाना भी एक बड़ी रणनीतिक चूक थी, क्योंकि उस समय इंजन की थ्रस्ट क्षमता केवल 70–75 kN थी, जबकि तेजस जैसे फाइटर को 90–100 kN की आवश्यकता थी।
फ्रांसीसी सहयोग की असफलता
2013 में फ्रांस की कंपनी Snecma के साथ सहयोग की बातचीत भी असफल रही, क्योंकि वे केवल अपने मौजूदा इंजन का ‘इको कोर’ भारत को देने को तैयार थे, जबकि भारत को संपूर्ण तकनीकी ट्रांसफर चाहिए था।
अब नई उम्मीदें
अब इस परियोजना में फिर से नई ऊर्जा दिखाई दे रही है। इसमें ब्लिस्क्स, एडवांस कोटिंग, और देश में बना आफ्टरबर्नर शामिल है, जिसे BrahMos Aerospace के साथ मिलकर विकसित किया जा रहा है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में बताया कि भारत GE, Rolls-Royce और Safran जैसी कंपनियों से साझेदारी पर बातचीत कर रहा है, लेकिन तकनीकी नियंत्रण भारत के पास ही रहेगा।
क्यों जरूरी है यह इंजन?

कावेरी इंजन अब सिर्फ तकनीकी प्रतीक नहीं, बल्कि रणनीतिक अनिवार्यता बन चुका है। भारत को पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स की जरूरत है, और यह संभव नहीं जब तक इंजन स्वदेशी नहीं होगा। ऑपरेशन सिंदूर और पाहलगाम हमले जैसे हालिया घटनाक्रमों के बीच, देश की मांग है कि भारत अब और अधिक विदेशी निर्भरता ना रखे।