What Is Salwa Judum Movement-
नई दिल्ली/रायपुर। 5 जुलाई 2011, वह तारीख जब सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के बस्तर में चलाए गए सलवा जुडूम अभियान पर रोक लगा दी थी। अदालत ने कहा था कि लोकतंत्र में आदिवासी युवाओं को बंदूक थमाना और नक्सलियों से लड़ाना असंवैधानिक है। अदालत ने आदेश दिया था कि सभी स्पेशल पुलिस ऑफिसर्स (SPOs) से हथियार तुरंत वापस लिए जाएं और उन्हें वैकल्पिक रोजगार दिया जाए।
अब 14 साल बाद यह मुद्दा फिर से सियासत में गरमा गया है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट का वह ऐतिहासिक फैसला लिखने वाले जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी को विपक्ष ने उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है। इसी बीच केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बयान दिया कि 2011 का यह फैसला नक्सलवाद को बढ़ावा देने वाला था।
शाह का बयान – फैसले से नक्सलवाद को मिली ताकत
22 अगस्त को केरल में शाह ने कहा कि यदि सलवा जुडूम बंद न होता तो नक्सलवाद 2020 तक खत्म हो गया होता। शाह ने आरोप लगाया कि सुदर्शन रेड्डी वही व्यक्ति हैं जिन्होंने नक्सलवाद को मदद पहुंचाई। उन्होंने ANI को दिए इंटरव्यू में कहा कि अदालत ने आदिवासियों के आत्मरक्षा के अधिकार को खत्म कर दिया और इसी वजह से नक्सलवाद लंबे समय तक बना रहा।
सलवा जुडूम क्या था?

सलवा जुडूम शब्द गोंडी भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है “शांति यात्रा”। 2005 में बस्तर के दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर जिलों में यह अभियान शुरू हुआ था। सरकार और स्थानीय नेताओं का दावा था कि ग्रामीण खुद नक्सलियों के खिलाफ खड़े हो रहे हैं।
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गांव-गांव में कैंप बनाए गए
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14-17 साल के किशोरों तक को SPO बनाकर हथियार दिए गए
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अभियान को सरकार ने “जन आंदोलन” कहकर समर्थन दिया
महेंद्र कर्मा की भूमिका और विवाद

कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा इस अभियान का सबसे बड़ा चेहरा बने। उस समय भाजपा सरकार (मुख्यमंत्री रमन सिंह) ने भी इसे समर्थन दिया और SPO को कानूनी मान्यता दी। लेकिन मानवाधिकार संगठनों ने आरोप लगाया कि इस दौरान निर्दोषों की हत्याएं, महिलाओं पर अत्याचार और जबरन विस्थापन हुआ।
2013 के दरभा घाटी नक्सली हमले में महेंद्र कर्मा की हत्या कर दी गई, जिससे यह आंदोलन और विवादित हो गया।
सुप्रीम कोर्ट तक मामला कैसे पहुंचा?
मानवाधिकार कार्यकर्ता नंदिनी सुंदर, इतिहासकार रामचंद्र गुहा और अन्य ने याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में आदेश दिया कि SPO व्यवस्था खत्म की जाए और सलवा जुडूम असंवैधानिक है। सभी हथियार वापस लेकर युवाओं को अन्य काम दिए जाएं।
कोर्ट के फैसले के बाद क्या हुआ?
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SPO व्यवस्था समाप्त करनी पड़ी
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हथियार वापस लिए गए
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बाद में DRG (District Reserve Guard) और बस्तर फाइटर्स जैसी नई फोर्स बनाई गई
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आलोचकों का कहना है कि सलवा जुडूम नाम से भले खत्म हुआ हो, लेकिन उसकी नीति आज भी जारी है

नंदिनी सुंदर का आरोप और भाजपा का पलटवार
नंदिनी सुंदर का कहना है कि DRG और बस्तर फाइटर्स सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन हैं। उन्होंने कहा कि सलवा जुडूम कभी जन आंदोलन नहीं था बल्कि राज्य-प्रायोजित हिंसा थी।
वहीं भाजपा नेताओं का आरोप है कि नंदिनी सुंदर और अन्य कार्यकर्ताओं की वजह से नक्सलियों को फायदा मिला।
जजों और राजनीतिक विवाद
56 पूर्व न्यायाधीशों ने बयान जारी कर कहा कि किसी सुप्रीम कोर्ट जज के फैसले पर राजनीतिक टिप्पणी न्यायपालिका की स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचा सकती है। वहीं रिटायर्ड जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी ने कहा कि यह फैसला उनका व्यक्तिगत नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट का सामूहिक निर्णय था।

सलवा जुडूम 2 की चर्चा
महेंद्र कर्मा के बेटे छविंद्र कर्मा का कहना है कि नक्सलवाद खत्म करने के लिए सलवा जुडूम 2 जैसा अभियान जरूरी है। हालांकि उनका भी मानना है कि विचारधारा को केवल बंदूक से नहीं मिटाया जा सकता।
इस तरह, सुप्रीम कोर्ट का 14 साल पुराना फैसला आज भी राजनीति और नक्सलवाद पर बहस का केंद्र बना हुआ है। एक तरफ इसे संविधान और मानवाधिकार की जीत कहा जाता है, तो दूसरी ओर भाजपा का दावा है कि इसी फैसले से नक्सलवाद को पनपने का मौका मिला।

