
US Tariff On Electronics: भारत को 2 हफ्ते की राहत, इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर पर नहीं लगेगा शुल्क; ट्रंप के फैसले की समीक्षा जारी
भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री को अमेरिकी टैरिफ से फिलहाल राहत मिली है। यह राहत अस्थायी है और अगले दो हफ्तों में अमेरिका द्वारा सेक्शन 232 की समीक्षा की जानी है। सरकार के लिए यह समय कूटनीतिक प्रयासों और व्यापारिक रणनीतियों को मजबूती देने का अवसर है ताकि ‘मेक इन इंडिया’ अभियान और भारत की तकनीकी प्रगति को नुकसान न पहुंचे।
सूत्रों के अनुसार, अमेरिका की ओर से प्रस्तावित 25% टैरिफ को अभी लागू नहीं किया गया है, क्योंकि सेक्शन 232 की प्रक्रिया अधूरी है। यह सेक्शन अमेरिकी कानून के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर आयातित उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की अनुमति देता है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद भी शामिल हैं।
ट्रंप का ऐलान और भारत पर असर
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को घोषणा की थी कि 1 अगस्त से भारत से आने वाले सभी इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों पर 25% शुल्क लगाया जाएगा। इसके साथ ही रूस से रक्षा उपकरण और कच्चा तेल खरीदने को लेकर भारत पर अलग से आर्थिक दंड लगाने की योजना है।
सेक्शन 232 क्या है?
यह एक अमेरिकी व्यापार प्रावधान है जो राष्ट्रीय सुरक्षा को आधार बनाकर विशेष उत्पादों पर शुल्क लगाने की अनुमति देता है। इससे पहले जब अमेरिका ने 10% बेसिक ड्यूटी लगाई थी, तब भी कुछ तकनीकी उत्पादों को समीक्षा के दौरान छूट दी गई थी।
इंडस्ट्री पर संभावित प्रभाव
यदि प्रस्तावित टैरिफ लागू होता है, तो मोबाइल, लैपटॉप, सेमीकंडक्टर और आईटी हार्डवेयर जैसे क्षेत्रों पर बड़ा असर पड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भारतीय कंपनियों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा क्षीण हो सकती है और ‘मेक इन इंडिया’ उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में नुकसान हो सकता है।
सरकार की रणनीति और भू-राजनीतिक पहलू
भारत सरकार इस स्थिति को गंभीरता से लेते हुए अमेरिका के साथ बातचीत कर रही है। यह केवल व्यापार नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक दबाव की रणनीति भी है, जिसमें अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से सैन्य और ऊर्जा समझौते न करे। भारत इस समय रणनीतिक स्वतंत्रता और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच संतुलन बना रहा है।
आगे की राह
यदि दो हफ्तों बाद की समीक्षा में भारत को टैरिफ से छूट मिलती है, तो यह राहत बनी रहेगी। अन्यथा, भारत को विश्व व्यापार संगठन (WTO) या द्विपक्षीय मंचों पर कूटनीतिक लड़ाई लड़नी पड़ सकती है। इसके लिए निर्यात प्रोत्साहन, घरेलू उत्पादन में वृद्धि और वैकल्पिक व्यापार साझेदारों की खोज जैसी रणनीतियाँ अपनानी होंगी।