
भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताएँ
1. विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान
भारत का संविधान दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देशों में सबसे विस्तृत और लंबा लिखित संविधान है। जब इसे 1949 में अपनाया गया, तब इसमें 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 8 अनुसूचियाँ थीं। समय के साथ इसमें संशोधन होते गए और अब (2019 तक) यह बढ़कर लगभग 470 अनुच्छेद, 25 भाग और 12 अनुसूचियों वाला दस्तावेज बन चुका है।
इस विस्तार के पीछे कई कारण हैं—जैसे देश का विशाल भूगोल, विविध संस्कृति, भारत सरकार अधिनियम 1935 का प्रभाव, और केंद्र-राज्य दोनों के लिए एक ही संविधान की व्यवस्था।
2. कई देशों से प्रेरित संविधान
भारत के संविधान को विभिन्न देशों के संविधानों से आवश्यक विशेषताएँ लेकर तैयार किया गया है। इनमें शामिल हैं:
-
ब्रिटेन: संसदीय प्रणाली, विधायी प्रक्रिया, एकल नागरिकता
-
अमेरिका: मौलिक अधिकार, न्यायिक समीक्षा, स्वतंत्र न्यायपालिका
-
आयरलैंड: नीति निदेशक सिद्धांत, राष्ट्रपति चुनाव पद्धति
-
कनाडा: शक्तिशाली केंद्र, राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति
-
ऑस्ट्रेलिया: समवर्ती सूची, व्यापार और संचार की स्वतंत्रता
-
जर्मनी (वाइमर गणराज्य): आपात स्थिति में मौलिक अधिकारों का निलंबन
-
रूस (पूर्व USSR): प्रस्तावना में मौलिक कर्तव्यों की संकल्पना
-
फ्रांस: स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मूल्य
-
दक्षिण अफ्रीका और जापान: संविधान संशोधन की प्रक्रिया और विधिक सिद्धांत
3. कठोरता और लचीलापन—दोनों का संतुलन
संविधान को संशोधित करने की प्रक्रिया में कुछ अनुच्छेद विशेष बहुमत से ही बदले जा सकते हैं, जबकि कुछ में राज्यों की सहमति भी जरूरी होती है। वहीं कुछ सामान्य अनुच्छेद ऐसे भी हैं जिन्हें सामान्य बहुमत से संशोधित किया जा सकता है। यह विशेषता इसे न तो पूरी तरह कठोर बनाती है और न ही अत्यधिक लचीला।
4. संघात्मक व्यवस्था के साथ एकात्मक झुकाव
हालाँकि भारत को एक संघ कहा गया है, लेकिन इसमें केंद्र को अत्यधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं। ‘राज्यों का संघ’ शब्द इस बात का संकेत देता है कि भारत में कोई भी राज्य संविधान से बाहर नहीं जा सकता। यही कारण है कि इसे “संघीय ढांचा लेकिन एकात्मक भावना” वाला संविधान माना जाता है।
5. संसदीय प्रणाली
भारत ने ब्रिटेन के जैसे संसदीय शासन को अपनाया है जिसमें वास्तविक कार्यपालिका मंत्रिपरिषद होती है, जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री (या राज्य में मुख्यमंत्री) करता है। कार्यपालिका संसद के प्रति उत्तरदायी होती है। हालांकि यह प्रणाली ब्रिटिश मॉडल पर आधारित है, परंतु भारत में राष्ट्रपति निर्वाचित होता है, जबकि ब्रिटेन में राजा/रानी वंशानुगत होता है।
6. संसद की संप्रभुता और न्यायपालिका की सर्वोच्चता का संयोजन
संविधान में दोनों शक्तियों का संतुलन है—संसद कानून बना सकती है, परंतु सर्वोच्च न्यायालय उन्हें असंवैधानिक घोषित कर सकता है। वहीं संसद संविधान में संशोधन भी कर सकती है। यह भारत की शासन प्रणाली को संतुलित बनाता है।
7. एकीकृत और स्वतंत्र न्यायपालिका
भारत की न्यायिक प्रणाली एकीकृत है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के अधीन सभी अदालतें आती हैं। यह प्रणाली स्वतंत्र भी है, ताकि न्यायपालिका सरकार से प्रभावित न हो। न्यायपालिका का प्रमुख कार्य संविधान की रक्षा और नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा करना है।
8. मौलिक अधिकार
भारतीय संविधान सभी नागरिकों को छह प्रकार के मौलिक अधिकार देता है:
-
समानता का अधिकार
-
स्वतंत्रता का अधिकार
-
शोषण के विरुद्ध अधिकार
-
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
-
सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार
-
संवैधानिक उपचारों का अधिकार
9. राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत
संविधान के भाग IV में राज्य को शासन चलाने हेतु मार्गदर्शन देने वाले सिद्धांत दिए गए हैं। ये न्यायालय में लागू तो नहीं कराए जा सकते, लेकिन विधि निर्माण में इन्हें मार्गदर्शक माना जाता है। इन्हें तीन भागों में बाँटा जा सकता है—समाजवादी, गांधीवादी और उदारवादी विचारधारा।
10. मौलिक कर्तव्य
42वें संविधान संशोधन (1976) में नागरिकों के लिए 10 मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया था, जिन्हें बाद में 11 कर दिया गया। ये कर्तव्य नागरिकों को यह याद दिलाते हैं कि अधिकारों के साथ जिम्मेदारियाँ भी जरूरी हैं।
11. धर्मनिरपेक्षता
भारत में कोई राज्य धर्म नहीं है। संविधान सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करने की बात करता है, यानी राज्य न तो किसी धर्म को बढ़ावा देता है और न ही किसी से भेदभाव करता है।
12. सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार
भारत में हर नागरिक जिसे 18 वर्ष की उम्र पूरी हो चुकी हो, उसे वोट डालने का अधिकार है—चाहे उसकी जाति, धर्म, लिंग या आय हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
13. एकल नागरिकता
भारत में सभी नागरिकों को एक समान नागरिकता प्राप्त है। चाहे कोई भी राज्य हो, नागरिकों को देशभर में समान अधिकार प्राप्त हैं।
14. स्वतंत्र संस्थाएँ
संविधान ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए कुछ स्वतंत्र संस्थाओं का गठन किया है:
-
निर्वाचन आयोग: निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए
-
सीएजी: सरकार के खातों का लेखा-परीक्षण
-
संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोग: सरकारी नौकरियों के लिए भर्ती व अनुशासन
15. आपातकालीन प्रावधान
संविधान में तीन प्रकार की आपात स्थिति का प्रावधान है:
-
राष्ट्रीय आपातकाल (युद्ध, बाहरी हमला या विद्रोह)
-
राज्य आपातकाल (किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता)
-
वित्तीय आपातकाल (देश की वित्तीय स्थिरता पर खतरा)
16. त्रिस्तरीय शासन प्रणाली
73वें और 74वें संशोधनों (1992) द्वारा भारत में पंचायतों और नगरपालिकाओं को संवैधानिक दर्जा मिला। इससे सरकार का तीसरा स्तर—स्थानीय शासन—मजबूत हुआ।
17. सहकारी समितियों को संवैधानिक मान्यता
97वें संशोधन (2011) के माध्यम से सहकारी समितियों को भी संविधान में स्थान मिला। इससे ग्रामीण और कृषि अर्थव्यवस्था को बल मिला।
निष्कर्ष:
भारतीय संविधान न केवल व्यापक और विस्तृत है, बल्कि इसकी विशेषताएँ लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए वैश्विक अनुभवों और भारतीय परिस्थितियों का संतुलित मिश्रण हैं। यह संविधान नागरिकों को अधिकार भी देता है और कर्तव्यों की याद भी दिलाता है।
छत्तीसगढ़ इनसाइड न्यूज़ के वाट्सअप ग्रुप में एड होने के लिए क्लिक करे