
Jonas Masetti -ब्राजील के जोनास मसेटी ने धोती और तिलक में पद्मश्री ग्रहण कर रचा इतिहास
नई दिल्ली – 28 मई 2025 को राष्ट्रपति भवन में एक दृश्य ने सभी को चौंका दिया। सफेद धोती पहने, माथे पर तिलक और नंगे पांव खड़े एक विदेशी व्यक्ति को जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद्मश्री सम्मान से नवाज़ा, तो पूरा देश गौरव से भर गया। ये थे जोनास मसेटी, जिन्हें अब दुनिया आचार्य विश्वनाथ के नाम से जानती है।
ब्राजील में जन्म, लेकिन आत्मा से भारतीय
जोनास मसेटी का जन्म रियो डी जनेरियो में हुआ था। पेशे से वे एक मैकेनिकल इंजीनियर थे और ब्राजील की टॉप कंपनियों व स्टॉक मार्केट में कार्यरत थे। सब कुछ होते हुए भी वे अंदर से अधूरे महसूस करते थे। उन्होंने कहा, “मैंने वो सब पा लिया था जो पश्चिमी समाज में सफलता मानी जाती है, लेकिन मेरे मन में खालीपन था। मैं जीवन का असली उद्देश्य तलाश रहा था।” यही खोज उन्हें भारत ले आई।
तमिलनाडु के आश्रम से बदली ज़िंदगी
2004 में जोनास ने ब्राजील में एक भारतीय गुरु से वेदांत की पढ़ाई शुरू की। 2006 में वे पद्मश्री विजेता ग्लोरिया एरियरा के संपर्क में आए और फिर अमेरिका में स्वामी दयानंद सरस्वती से मिले। 2009 में उन्होंने कोयंबटूर के आर्ष विद्या गुरुकुलम में तीन साल तक रहकर वेदांत, संस्कृत और भगवद गीता का गहन अध्ययन किया।
ब्राजील में ‘विश्व विद्या गुरुकुलम’ की स्थापना
भारत में ज्ञान अर्जन के बाद उन्होंने ब्राजील लौटकर पेट्रोपोलिस की पहाड़ियों में विश्व विद्या गुरुकुलम की नींव रखी। 2014 में शुरू हुआ यह संस्थान आज वेदांत, योग, मंत्र और संस्कृत शिक्षा का एक अंतरराष्ट्रीय केंद्र बन चुका है।
जोनास ने फ्री ऑनलाइन कोर्स की शुरुआत की, जिससे पिछले 7 वर्षों में 1.5 लाख से अधिक छात्र वेदों से जुड़ चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने ‘वेदांत कास्ट’ नाम से पॉडकास्ट भी शुरू किया, जो आज हजारों लोगों तक भारतीय दर्शन पहुंचा रहा है।
पुस्तकें और गीता का पुर्तगाली अनुवाद
जोनास ने योग और वेदांत पर पुर्तगाली व अंग्रेजी में कई पुस्तकें लिखी हैं। उन्होंने भगवद गीता का पुर्तगाली में अनुवाद भी किया, जिसे पूरा करने में उन्हें 2.5 वर्ष लगे।
प्रधानमंत्री मोदी ने की प्रशंसा
2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में जोनास मसेटी की सराहना करते हुए उन्हें “वैदिक संस्कृति का राजदूत” कहा। 2024 में ब्राजील में आयोजित G20 समिट में उन्होंने मोदी से मुलाकात की और उनकी टीम ने संस्कृत में रामायण की प्रस्तुति दी।
“यह सम्मान मेरी नहीं, परंपरा की जीत है”
पद्मश्री प्राप्ति के बाद जोनास ने कहा, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे भारत सरकार से ऐसा सम्मान मिलेगा। यह पुरस्कार सिर्फ मेरा नहीं, बल्कि उन सभी का है जो इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं।”
भारतीय युवाओं से विशेष आग्रह
जोनास का मानना है कि भारतीय युवा अपनी संस्कृति को कमतर आंकते हैं और पश्चिमी जीवनशैली की ओर आकर्षित हो रहे हैं। उन्होंने कहा, “भारत में इतने संत और गुरु हैं कि एक विदेशी को यहां आकर सिखाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। लेकिन दुःख की बात है कि युवा अपनी जड़ों को भूल रहे हैं।”
उन्होंने युवाओं से वेदांत और योग अपनाने की अपील की, क्योंकि यही जीवन का असली उद्देश्य समझाते हैं।
वेदों की गूंज अब ब्राजील में भी
जोनास मसेटी की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि सनातन धर्म की वैश्विक पहुंच की कहानी है। एक विदेशी युवक, जिसने भारत आकर वेदों का ज्ञान पाया और अब उसे पूरी दुनिया में फैला रहा है – यह अपने आप में भारतीय संस्कृति की विजय है।
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