India US Relations-
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिका को स्पष्ट संदेश देते हुए कहा कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों से किसी भी तरह का समझौता नहीं करेगा। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि “भारत से तेल खरीदने में जिन्हें दिक्कत है, वे न खरीदें”। जयशंकर ने भारत-अमेरिका रिश्तों में इस समय मौजूद तीन बड़ी दिक्कतों को भी गिनाया –
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व्यापार और टैरिफ
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रूस से कच्चे तेल की खरीद
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पाकिस्तान पर वॉशिंगटन का हस्तक्षेप
व्यापार और टैरिफ पर भारत की “रेड लाइन्स”
जयशंकर ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित व्यापार समझौते की बातचीत में भारत की कुछ रेड लाइन्स हैं। सरकार किसानों और छोटे उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए किसी भी कीमत पर खड़ी रहेगी। राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा भारतीय वस्तुओं पर 50% तक का टैरिफ लगाने के बाद दोनों देशों के रिश्तों में खटास आई है। इसमें रूस से तेल आयात को लेकर 25% अतिरिक्त शुल्क भी शामिल है।
उन्होंने कहा, “भारत के लिए व्यापार सबसे अहम मुद्दा है और इस पर हम समझौता नहीं करेंगे। हमारी प्राथमिकता अपने किसानों और छोटे उत्पादकों की सुरक्षा है।”
रूस से तेल खरीद पर अमेरिका को जवाब
भारत के रूस से कच्चा तेल खरीदने पर अमेरिका की आपत्तियों का जवाब देते हुए जयशंकर ने कहा, “अगर आपको भारत से तेल या रिफाइंड प्रोडक्ट खरीदने में दिक्कत है तो मत खरीदिए। कोई आपको मजबूर नहीं कर रहा। लेकिन यूरोप और अमेरिका खुद खरीद रहे हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि चीन और यूरोपीय संघ जैसे बड़े आयातकों पर इस तरह का तर्क लागू नहीं किया गया, जबकि भारत पर दबाव डाला जा रहा है। जयशंकर ने इसे भारत की रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) का हिस्सा बताया और कहा कि तेल खरीदना राष्ट्रीय हित के साथ-साथ वैश्विक बाजार की स्थिरता के लिए भी जरूरी है।
पाकिस्तान मामले पर अमेरिका का हस्तक्षेप अस्वीकार्य
विदेश मंत्री ने तीसरे मुद्दे पर कहा कि भारत-पाकिस्तान संबंधों में किसी भी प्रकार की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की जाएगी। उन्होंने याद दिलाया कि 1970 के दशक से ही इस मुद्दे पर भारत की राष्ट्रीय सहमति रही है।

चीन-भारत संबंधों को लेकर बयान
जयशंकर ने इस आकलन को भी खारिज किया कि भारत-चीन रिश्तों में सुधार इसलिए हो रहा है क्योंकि भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव बढ़ा है। उन्होंने कहा कि हर परिस्थिति का समाधान उसके अपने संदर्भ में करना पड़ता है, न कि सबको जोड़कर निष्कर्ष निकाला जाए।
इस बयान से साफ है कि भारत अपने आर्थिक और रणनीतिक हितों पर किसी भी देश के दबाव में आने को तैयार नहीं है और अमेरिका को यह संदेश स्पष्ट रूप से दिया जा चुका है।

