
हाईकोर्ट प्राचार्य नियुक्ति फैसला: जूनियर को प्रभारी प्राचार्य बनाना नियमों के खिलाफ, आदेश रद्द
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने विद्यालयों में प्रशासनिक पदों के आवंटन को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है, जो राज्य के शैक्षिक ढांचे के लिए एक नजीर के रूप में देखा जा रहा है। यह फैसला कोरबा जिले के एक शासकीय विद्यालय में प्रभारी प्राचार्य के पद पर कनिष्ठ व्याख्याता की नियुक्ति को लेकर आया है। हाईकोर्ट ने इस नियुक्ति को नियम विरुद्ध मानते हुए तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया है और वरिष्ठता के आधार पर पद बहाल करने के निर्देश दिए हैं।
मामले की शुरुआत:
यह मामला कोरबा जिले के करतला विकासखंड स्थित शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, कनकी से जुड़ा है, जहां व्याख्याता बी.एन. यादव वर्ष 2023 से प्रभारी प्राचार्य के रूप में कार्यरत थे। हालांकि, कुछ समय बाद उनके कार्यकाल के दौरान प्रशासनिक कार्यों में अनियमितता की शिकायतें सामने आईं। इन शिकायतों के आधार पर जिला शिक्षा अधिकारी ने उन्हें प्रभारी प्राचार्य के पद से हटा दिया और उनके कनिष्ठ व्याख्याता सी.एल. पटेल को इस पद का प्रभार सौंप दिया।
याचिका दायर की गई:
इस आदेश को चुनौती देते हुए बी.एन. यादव ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। उन्होंने अपने अधिवक्ताओं – मतीन सिद्दीकी और घनश्याम कश्यप – के माध्यम से यह दलील दी कि कनिष्ठ अधिकारी को प्रभारी प्राचार्य बनाना छत्तीसगढ़ शासन द्वारा निर्धारित वरिष्ठता नियमों और सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा समय-समय पर जारी सर्कुलरों के खिलाफ है।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं ने न्यायालय को यह जानकारी दी कि सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा 16 मई 2012, 7 फरवरी 2013 और 14 जुलाई 2014 को जारी किए गए सर्कुलरों में स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि प्रशासनिक प्रभार सौंपते समय वरिष्ठता और योग्यता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। वरिष्ठ अधिकारी की मौजूदगी में कनिष्ठ को यह जिम्मेदारी देना नियमों का खुला उल्लंघन है।
हाईकोर्ट की टिप्पणी और आदेश:
न्यायमूर्ति बी.डी. गुरु की एकलपीठ ने मामले की सुनवाई के बाद पाया कि जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा जारी किया गया आदेश प्रक्रियागत रूप से त्रुटिपूर्ण है और इसमें शासन के निर्धारित नियमों का पालन नहीं किया गया। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि प्रशासनिक पदों पर नियुक्ति करते समय वरिष्ठता का सम्मान किया जाना चाहिए और नियमों का पालन आवश्यक है।
इस आधार पर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने जिला शिक्षा अधिकारी, कोरबा द्वारा 18 जुलाई 2024 को जारी आदेश को निरस्त कर दिया और बी.एन. यादव को पुनः प्रभारी प्राचार्य के रूप में बहाल करने का निर्देश दिया।
इस फैसले का महत्त्व:
यह फैसला छत्तीसगढ़ के शिक्षा तंत्र में एक स्पष्ट संदेश देता है कि मनमानी नियुक्तियों और पक्षपातपूर्ण निर्णयों को अब न्यायिक जांच में बख्शा नहीं जाएगा। कोर्ट के इस आदेश से यह स्पष्ट होता है कि प्रशासनिक पदों की नियुक्ति में पारदर्शिता और वरिष्ठता के सिद्धांतों का पालन अनिवार्य है।
इसके अतिरिक्त, यह निर्णय राज्य के अन्य जिलों में भी ऐसे मामलों के लिए एक उदाहरण बनेगा, जहाँ नियमों की अनदेखी कर कनिष्ठ अधिकारियों को वरीयता दी जाती है।
प्रशासनिक जवाबदेही की आवश्यकता:
शिक्षा विभाग जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में प्रशासनिक जवाबदेही और निष्पक्ष निर्णय आवश्यक होते हैं। किसी अधिकारी को केवल शिकायतों के आधार पर हटाना तब तक न्यायोचित नहीं माना जा सकता जब तक उसकी विधिवत जांच न हो जाए। उच्च न्यायालय ने इस निर्णय से यह सुनिश्चित किया है कि बिना ठोस कारण के किसी वरिष्ठ अधिकारी को पद से हटाना गलत है।
शिक्षकों और कर्मचारियों में संदेश:
इस फैसले से राज्य भर के शिक्षकों और शिक्षा विभाग के कर्मचारियों के बीच यह भरोसा पनपेगा कि यदि उनके साथ कोई अन्याय होता है, तो वे न्यायालय की शरण में जाकर न्याय प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही, अधिकारियों को यह भी समझ आ जाएगा कि किसी भी प्रशासनिक निर्णय के लिए नियमों और प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है।
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