
Golden Dome : ट्रंप का अत्याधुनिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम, जो बैलेस्टिक, हाइपरसोनिक और क्रूज मिसाइलों को हवा में ही खत्म करेगा
डोनाल्ड ट्रंप द्वारा प्रस्तावित “गोल्डन डोम” मिसाइल डिफेंस सिस्टम दुनिया में रक्षा तकनीक के क्षेत्र में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य अमेरिका के हवाई क्षेत्र को पूरी तरह से सुरक्षित बनाना है ताकि किसी भी बाहरी खतरे से देश की रक्षा की जा सके। यह प्रणाली 175 अरब डॉलर की लागत से विकसित की जा रही है।
भारतीय मिसाइल डिफेंस की सफलता और उसकी प्रासंगिकता
हाल ही में भारत ने पाकिस्तान द्वारा किए गए मिसाइल और ड्रोन हमलों का प्रभावी तरीके से जवाब दिया। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत की मिसाइल डिफेंस प्रणाली, विशेषकर S-400 बैटरी ने दुश्मन की मिसाइलों को हवा में ही नष्ट कर दिया। यह साबित करता है कि आधुनिक युद्धों में डिफेंस सिस्टम कितने अहम हैं।
मिसाइल डिफेंस सिस्टम की भूमिका और टेक्नोलॉजी
यह सिस्टम रडार, सैटेलाइट और AI-सक्षम सेंसर के ज़रिए खतरे की पहचान कर मिसाइल को ट्रैक करता है और समय रहते उसे निष्क्रिय कर देता है। इससे सैन्य और नागरिक ढांचे की सुरक्षा होती है और पलटवार के लिए समय मिलता है।
इजरायल का उदाहरण: आयरन डोम
हमास द्वारा किए गए हमलों के दौरान इजरायल के मिसाइल डिफेंस सिस्टम ‘आयरन डोम’ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। दर्जनों मिसाइलें और ड्रोन हवा में ही नष्ट कर दिए गए थे।
ट्रंप का गोल्डन डोम: अमेरिका की सुरक्षा के लिए भविष्य की योजना
ट्रंप द्वारा पेश किया गया गोल्डन डोम सिस्टम एक अंतरिक्ष आधारित, मल्टी-लेयर प्रोटेक्शन सिस्टम होगा जो पूरी पृथ्वी की निगरानी करेगा। इसकी तकनीक को एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स, पलांटिर और एंडुरिल जैसी कंपनियों के सहयोग से तैयार किया जा रहा है।
किन खतरों से अमेरिका को है डर?
हालांकि फिलहाल अमेरिका किसी प्रत्यक्ष युद्ध में शामिल नहीं है, लेकिन भविष्य में चीन, रूस, ईरान और उत्तर कोरिया से संभावित खतरे को ध्यान में रखते हुए यह योजना बनाई गई है। The Wall Street Journal के मुताबिक, हाइपरसोनिक मिसाइलें, AI-आधारित हथियार और लंबी दूरी के ड्रोन खतरे का रूप ले सकते हैं।
ट्रंप का वादा और रणनीति
अपने चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप ने देश की सुरक्षा के लिए अत्याधुनिक मिसाइल डिफेंस बनाने का वादा किया था, जिसे अब मूर्त रूप दिया जा रहा है। वे चाहते हैं कि यह सिस्टम 2029 तक तैयार हो जाए।
गोल्डन डोम की कार्यप्रणाली
यह प्रणाली सैटेलाइट आधारित सेंसर से काम करेगी। इसमें 1000 से अधिक सैटेलाइट्स होंगे जो किसी भी खतरे का जल्द पता लगाकर उसे ट्रैक करेंगे। यह शॉर्ट, मीडियम और लॉन्ग रेंज मिसाइलों को हवा में ही समाप्त कर सकेगा।
S-400 से तुलना
S-400 एक प्रभावी ग्राउंड-बेस्ड डिफेंस सिस्टम है जिसे रूस ने बनाया है और भारत इसका उपयोग कर रहा है। इसकी रेंज 400 किमी तक सीमित है और यह मुख्य रूप से शॉर्ट-टू-मीडियम रेंज के लिए है। इसके विपरीत गोल्डन डोम एक स्पेस-बेस्ड, AI और लेजर तकनीक से लैस मल्टी-लेयर शील्ड होगा जिसकी पकड़ और जवाबी कार्रवाई की क्षमता कहीं ज्यादा व्यापक होगी।
तकनीकी और रणनीतिक चुनौतियां
विशेषज्ञों का मानना है कि इस सिस्टम का निर्माण तकनीकी रूप से अत्यंत जटिल होगा और इसकी लागत भी बहुत अधिक है। इस परियोजना की शुरुआत से ही हथियारों की होड़ को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे वैश्विक स्थिरता पर असर पड़ सकता है।
कनाडा की भागीदारी और उत्तर अमेरिकी सुरक्षा
ट्रंप ने बताया है कि कनाडा ने इस प्रोजेक्ट में दिलचस्पी दिखाई है। यदि यह साझेदारी आगे बढ़ती है, तो यह सिस्टम संपूर्ण उत्तर अमेरिका को एक मिसाइल डिफेंस कवच प्रदान करेगा।
कमांड और नेतृत्व
इस परियोजना की जिम्मेदारी स्पेस फोर्स के जनरल माइकल गुटेलिन को दी गई है। गोल्डन डोम भविष्य की लड़ाइयों में अमेरिका के लिए गेमचेंजर साबित हो सकता है।