
दुश्मन देश इजेक्टेड पायलट पर फायर क्यों नहीं करता? जानिए जिनेवा कन्वेंशन के तहत नियम
युद्ध के दौरान यदि कोई फाइटर पायलट दुश्मन देश की सीमा में आकर गिरता है, तो आम तौर पर उस पर फायरिंग नहीं की जाती। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है? आखिर क्या नियम हैं जो दुश्मन को ऐसा करने से रोकते हैं?
दरअसल, जब कोई फाइटर प्लेन किसी तकनीकी खराबी या हमले का शिकार होता है, तो पायलट की पहली प्राथमिकता होती है खुद की जान बचाना। ऐसे में पायलट “इजेक्शन तकनीक” का इस्तेमाल करता है। इसमें प्लेन की सीट के नीचे मौजूद रॉकेट-पावर्ड सिस्टम की सहायता से वह खुद को विमान से बाहर निकाल लेता है। इस प्रक्रिया में वह लगभग 30 मीटर ऊपर उछलता है और पैराशूट के ज़रिए सुरक्षित नीचे उतरने की कोशिश करता है।
अब यदि यह पायलट दुश्मन के इलाके में गिर जाए, तो क्या उस पर गोली चलाई जा सकती है? जवाब है — नहीं। इसके पीछे एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय कानून है — जिनेवा कन्वेंशन।
क्या है जिनेवा कन्वेंशन?
जिनेवा कन्वेंशन अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून की एक संधियों की श्रृंखला है, जो युद्ध के समय सैन्य कर्मियों और नागरिकों के साथ मानवीय व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई है। कुल चार जिनेवा कन्वेंशन हैं, जिनमें से तीसरा कन्वेंशन युद्धबंदियों (Prisoners of War) के अधिकारों और सुरक्षा से संबंधित है।
इस कन्वेंशन के अनुसार:
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युद्ध के दौरान यदि कोई सैनिक दुश्मन देश के कब्जे में आता है, तो उसे बंदी माना जाता है, न कि अपराधी।
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ऐसे सैनिकों को न तो गोलियों से मारा जा सकता है और न ही उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जा सकता है।
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उन्हें उचित चिकित्सा सहायता, आश्रय और भोजन देना अनिवार्य है।
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उनके साथ शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना, बलात्कार, या अपमानजनक व्यवहार करना अंतरराष्ट्रीय अपराध माना जाता है।
बंदी बनाए गए सैनिकों के अधिकार
इजेक्ट होकर दुश्मन क्षेत्र में गिरे सैनिक को उस देश की सेना पकड़ तो सकती है, लेकिन उसे मार नहीं सकती। उसे युद्धबंदी माना जाएगा। यह सैनिक तब तक हिरासत में रखा जाता है, जब तक युद्ध समाप्त नहीं हो जाता। युद्ध समाप्त होने के बाद उसे बिना देरी के रिहा किया जाता है।
इस दौरान हिरासत में लेने वाला देश:
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उस सैनिक के देश को उसकी जानकारी देता है।
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उसे उचित मानवीय व्यवहार और गरिमा प्रदान करता है।
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उसे यातना या दंड नहीं देता।
क्यों जरूरी है यह नियम?
इतिहास गवाह है कि युद्धों में अक्सर बंदी सैनिकों के साथ क्रूर व्यवहार हुआ करता था — उन्हें मारा जाता था, भूखा रखा जाता था और कई बार महिलाओं के साथ भीषण अपराध किए जाते थे। जिनेवा कन्वेंशन ने इन घटनाओं को रोकने के लिए एक वैश्विक नैतिक मानक तय किया, जिसे लगभग सभी देशों ने स्वीकार किया है।
इसलिए, जब भी कोई फाइटर पायलट इजेक्ट होकर दुश्मन देश में गिरता है, तो उस पर हमला करना जिनेवा कन्वेंशन का उल्लंघन माना जाएगा, जिससे संबंधित देश पर अंतरराष्ट्रीय कार्यवाही हो सकती है।
इसके अतिरिक्त, जिनेवा कन्वेंशन के नियम सिर्फ युद्ध के दौरान ही लागू नहीं होते, बल्कि युद्ध की स्थिति में किसी भी मानवीय संकट को नियंत्रित करने के लिए एक नैतिक रूपरेखा प्रदान करते हैं। यदि कोई देश इन नियमों का उल्लंघन करता है और किसी इजेक्टेड पायलट को मारता है, तो उस देश पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में केस चल सकता है। इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठन भी ऐसे मामलों में हस्तक्षेप कर सकते हैं। कई बार युद्धबंदियों की अदला-बदली के जरिए भी देशों के बीच मानवीय रिश्तों को मजबूती मिलती है। इस तरह, जिनेवा कन्वेंशन वैश्विक शांति और मर्यादा बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है।
निष्कर्ष
जिनेवा कन्वेंशन पायलट सुरक्षा नियम यह सुनिश्चित करते हैं कि युद्ध की भी एक मर्यादा होनी चाहिए। इजेक्टेड पायलट को मारना युद्ध नहीं, बल्कि अपराध माना जाता है। यही कारण है कि किसी भी देश की सेना, चाहे वह कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, ऐसे पायलटों पर फायरिंग नहीं करती। यह कानून मानवता के प्रति सम्मान का प्रतीक है।