First Mahalaxmi Temple Built In Chhattisgarh-
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के रतनपुर में स्थित लखनी देवी महालक्ष्मी मंदिर राज्य का सबसे प्राचीन और आध्यात्मिक महत्व वाला मंदिर माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह वही स्थान है जहां द्वापर युग में पांडवों ने अश्वमेघ यज्ञ किया था। कहा जाता है कि यज्ञ के दौरान मां लक्ष्मी स्वयं प्रकट हुईं और पांडवों को धन और समृद्धि का आशीर्वाद दिया।
🔸 श्रीयंत्र के आकार में बना मंदिर
यह मंदिर श्रीयंत्र के आकार में निर्मित है और मां लक्ष्मी अष्टकमल (आठ पंखुड़ियों वाले कमल) पर विराजमान हैं। पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार, यह मंदिर करीब 800 साल पुराना है। इसे कल्चुरी राजा रत्नदेव तृतीय के प्रधानमंत्री पंडित गंगाधर ने वर्ष 1179 में बनवाया था।
🔸 पौराणिक कथा: पांडवों ने किया था अश्वमेघ यज्ञ
मंदिर के पुजारी रेवाराम उपाध्याय बताते हैं कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान किचक वध के बाद ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए रतनपुर में यज्ञ किया था। धन की कमी होने पर उन्होंने महालक्ष्मी की विशेष पूजा की। भक्ति से प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी ने उन्हें धन-धान्य का आशीर्वाद दिया और यज्ञ सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।
🔸 800 साल पुराना इतिहास और विशेष मान्यता
रतनपुर के इस मंदिर को ‘लखनी देवी मंदिर’ कहा जाता है। ‘लखनी’ शब्द वास्तव में ‘लक्ष्मी’ का स्थानीय रूपांतर है। यह मंदिर जिस पहाड़ी पर स्थित है, उसे इकबीरा पर्वत या लक्ष्मीधाम पर्वत कहा जाता है।
मंदिर का निर्माण शास्त्रों में वर्णित पुष्पक विमान के आकार में किया गया है। यहां स्थापित श्रीयंत्र को मां लक्ष्मी की समृद्धि शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
🔸 दीपावली पर विशेष पूजा और काली पूजन की परंपरा
दीपोत्सव के दौरान यहां विशेष महालक्ष्मी पूजन, धन-धान्य और वैभव की आराधना की जाती है। श्रद्धालु ज्वारा कलश स्थापित करते हैं और मंदिर में रसीद काटकर पूजा करते हैं — यह इस मंदिर की अनूठी परंपरा है।
कार्तिक अमावस्या की रात यहां मां काली की पूजा भी बड़े धूमधाम से की जाती है। व्रती पूरी रात 108 कमल के फूलों से पुष्पांजलि अर्पित करते हैं और 108 दीपों से मंदिर को आलोकित किया जाता है।
🔸 शास्त्रीय मान्यता
धनतेरस से शुरू होकर कार्तिक अमावस्या तक पांच दिवसीय दीपोत्सव में महालक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इसी दिन समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं और उन्होंने भगवान विष्णु को अपना पति स्वीकार किया था। इसलिए इस दिन की पूजा धन और समृद्धि लाती है।
