
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की कविता पर राजद्रोह का केस: नागपुर में कार्यक्रम के बाद बढ़ा विवाद
प्रसिद्ध उर्दू शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की क्रांतिकारी कविता ‘हम देखेंगे’ आज़ादी, समानता और फासीवाद विरोध का प्रतीक बन चुकी है। यह कविता भारत सहित दुनियाभर में विभिन्न आंदोलनों और सभाओं में पढ़ी जाती रही है। हाल ही में इसी कविता का पाठ महाराष्ट्र के नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में किया गया, जिसके बाद विवाद खड़ा हो गया और पुलिस ने आयोजकों पर राजद्रोह का मामला दर्ज कर लिया।
पूरा मामला विस्तार से:
13 मई को नागपुर के विदर्भ हिंदी साहित्य संघ भवन में वीरा साथीदार स्मृति समन्वय समिति और समता कला मंच द्वारा एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। यह आयोजन दिवंगत सामाजिक कार्यकर्ता वीरा साथीदार की याद में किया गया था, जिसमें उनकी पत्नी पुष्पा साथीदार आयोजक थीं।
कार्यक्रम में फ़ैज़ की मशहूर कविता ‘हम देखेंगे’ का पाठ किया गया, जिसके तुरंत बाद कुछ कलाकारों ने कथित तौर पर “भड़काऊ और आपत्तिजनक बयान” दिए। इन बयानों पर आपत्ति जताते हुए जन संघर्ष समिति के अध्यक्ष दत्तात्रेय शिर्के ने 16 मई को नागपुर के सीताबर्डी पुलिस स्टेशन में राजद्रोह सहित अन्य धाराओं में मामला दर्ज कराया।
शिर्के का आरोप है कि कविता में ‘सब ताज उछाले जाएंगे, सब तख़्त गिराए जाएंगे’ जैसे पंक्तियाँ और कार्यक्रम में दिया गया एक कलाकार का बयान — “जिस गाने से सरकार हिल गई थी, उसी से इस सिंहासन को हिलाने की ज़रूरत है…” — राष्ट्रविरोधी भावनाओं को भड़काता है।
पुलिस का पक्ष:
सीताबर्डी थाने की इंस्पेक्टर राखी गेडाम ने पुष्टि की है कि शिकायत के आधार पर आयोजकों के खिलाफ BNS की धारा 152, 196, 353, और 3(5) के तहत केस दर्ज किया गया है। इनमें:
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धारा 152: राजद्रोह से जुड़ी
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धारा 196: जाति-धर्म के आधार पर शत्रुता फैलाना
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धारा 353: कानून व्यवस्था में बाधा
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धारा 3(5): असंवैधानिक गतिविधियाँ
पुलिस अब वीडियो फुटेज, सोशल मीडिया और कार्यक्रम के अन्य दस्तावेजों की जांच कर रही है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम कानून:
यह मामला एक बार फिर भारत में “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” और “राजद्रोह कानून” के टकराव को उजागर करता है। जहाँ एक ओर फ़ैज़ की कविता लोकतांत्रिक मूल्यों की बात करती है, वहीं दूसरी ओर यह केस बताता है कि संवेदनशील राजनीतिक वातावरण में कलात्मक या साहित्यिक अभिव्यक्तियों को किस तरह चुनौती दी जा सकती है।
फ़ैज़ की शायरी पर इतना विवाद क्यों है?
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ (1911-1984) एक प्रसिद्ध उर्दू शायर थे. उनकी लिखी कविताएं, नज़्में बेहद लोकप्रिय हैं.
फ़ैज़ अपनी रचनाओं के माध्यम से सत्ता से सवाल पूछने में संकोच नहीं करते थे. उनकी लिखी प्रसिद्ध कविता ‘हम देखेंगे’ उनमें से एक है.
दरअसल, 1979 में लिखी गई इस कविता में पाकिस्तान की तत्कालीन सरकार का संदर्भ था. पाकिस्तान में ये सैन्य तानाशाह ज़िया-उल-हक़ का दौर था.
1977 में जनरल ज़िया के सत्ता में आने के बाद फ़ैज़ को पाकिस्तान छोड़ना पड़ा और उन्होंने चार वर्षों तक बेरूत में निर्वासन का जीवन बिताया.
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का 1984 में निधन हो गया था.
दो साल बाद, 1986 में, ग़ज़ल गायिका इकबाल बानो ने पाकिस्तान के लाहौर में अल-हमरा आर्ट्स काउंसिल ऑडिटोरियम में फ़ैज़ की कविता ‘हम देखेंगे’ गाई.
इकबाल बानो की आवाज़ ने इस कविता को अमर कर दिया.
फ़ैज़ की पूरी कविता इस प्रकार है-
हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिस का वादा है
जो लौह-ए-अज़ल में लिख्खा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिराँ
रूई की तरह उड़ जाएँगे
हम महकूमों के पाँव-तले
जब धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएँगे
हम अहल-ए-सफ़ा मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे
सब तख़्त गिराए जाएँगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ाएब भी है हाज़िर भी
जो मंज़र भी है नाज़िर भी
उट्ठेगा अनल-हक़ का नारा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज करेगी ख़ल्क़-ए-ख़ुदा