
Elephants Corridor Chhattisgarh कोरबा:
विकास के जिस मॉडल को मानव समाज ने अपनाया है, उसे पर्यावरणविद् लंबे समय से आलोचना की दृष्टि से देख रहे हैं। अंधाधुंध खनन और कंक्रीट के जंगलों को प्रगति का प्रतीक मान लिया गया है, परंतु यही तथाकथित विकास अब वन्य जीवों के लिए संकट बन चुका है। जब मनुष्य भूमि पर अतिक्रमण करता है, तो दूसरा पक्ष कानून का सहारा लेता है। लेकिन वन्य प्राणियों के पास न तो अधिकार होते हैं और न ही कोई मंच जहां वे अपनी बात रख सकें।
पुरखों का रास्ता छोड़ने को मजबूर गजराज
हाथियों को पृथ्वी पर सबसे बुद्धिमान वन्य जीवों में गिना जाता है। पीढ़ियों से वे अपने पूर्वजों के तय किए मार्गों पर चलते आए हैं। वे अपनी स्मृति में इन रास्तों को सुरक्षित रखते हैं और सालों तक वही रास्ता अपनाते हैं। परंतु आज विकास के नाम पर किए गए निर्माणों और परियोजनाओं ने उनके पारंपरिक मार्गों—”हाथी कॉरिडोर”—को बाधित कर दिया है।
नए रास्ते की तलाश में हाथियों की भटकन
जैसे-जैसे उनके मूल कॉरिडोर समाप्त हो रहे हैं, हाथी नए रास्तों की तलाश में आबादी वाले क्षेत्रों की ओर बढ़ रहे हैं। यह न केवल ग्रामीणों के लिए खतरे की स्थिति बनाता है, बल्कि हाथियों के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है। वन विभाग के लिए यह एक जटिल कार्य बन गया है कि वे हाथियों के नए मार्गों की पहचान करें और उनके व्यवहार को समझें।
हाथियों की संख्या और खतरे का आंकड़ा
भारत में वर्तमान में लगभग 29,000 हाथी बचे हैं और यह संख्या लगातार घट रही है। छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां लगभग 350 हाथी मौजूद हैं। राज्य के धमतरी, गरियाबंद, रायगढ़, कोरबा, सरगुजा और जशपुर जिलों में हाथियों की गतिविधि देखी जाती है। पिछले 23 वर्षों में छत्तीसगढ़ में 221 हाथियों की मौत हो चुकी है। वर्ष 2019 से 2024 के बीच यह संख्या तेजी से बढ़ी है। साथ ही, पिछले 6 सालों में लगभग 300 लोग हाथी-मानव द्वंद में जान गंवा चुके हैं।
कोरबा से सरगुजा तक हाथियों का स्थायी निवास
पहले जो हाथी कोरबा और कटघोरा वनमंडल में आकर लौट जाया करते थे, अब वहीं स्थायी रूप से बस गए हैं। सरगुजा से लेकर कोरबा तक फैले घने जंगल हाथियों को अनुकूल लगते हैं। वन विभाग कोशिश करता है कि हाथी मार्गों को खाली रखा जाए, मुनादी और जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाते हैं। फिर भी इन मार्गों पर सड़कें बन चुकी हैं, माइनिंग हो चुकी है।
झारखंड और ओडिशा में बड़े पैमाने पर खनन होने के कारण वहां के हाथियों के कॉरिडोर भी नष्ट हुए, जिससे वे छत्तीसगढ़ की ओर माइग्रेट हुए। अब यहां भी नए रास्ते बनाए जा रहे हैं।
विशेषज्ञों की राय
डॉ. संदीप शुक्ला, सहायक प्राध्यापक, ईवीपीजी कॉलेज कोरबा, बताते हैं कि हाथी कभी अपना रास्ता नहीं भूलते। लेकिन हाल के वर्षों में खदानों और सड़कों के कारण उनके मार्ग टूट गए हैं। इसी कारण वह नए रास्ते खोजते हुए रिहायशी इलाकों में प्रवेश कर जाते हैं।
जंगल में भोजन और जल की उपलब्धता ही हाथियों को वहीं रोक सकती है। हमें उनके प्राकृतिक मार्गों को संरक्षित करना होगा।
हाथी और शेर, दोनों ही प्राणी वन के इकोसिस्टम के लिए अनिवार्य हैं। यदि ये विलुप्त हो गए तो जंगल भी नष्ट हो जाएगा और अंततः मानव जीवन पर भी संकट आ जाएगा।
प्राकृतिक संकट के बीच हाथियों की बढ़ती चुनौतियाँ
वन्य जीव प्रेमी जितेंद्र सारथी का कहना है कि छत्तीसगढ़ का वातावरण हाथियों के लिए अनुकूल है। लेकिन जंगलों के सिकुड़ने और मानव बस्तियों के बढ़ने से हाथियों की आवाजाही सीमित हो गई है। शोरगुल, ट्रकों की आवाज और रोशनी जैसे कारण भी उन्हें परेशान करते हैं।
जब जंगल का क्षेत्र सीमित होता है, तो हाथी मजबूर होकर शहरी क्षेत्रों की ओर रुख करते हैं।
कोरबा में हाथियों की स्थिति
एसडीओ आशीष खेलवार, कोरबा वनमंडल, बताते हैं कि कोरबा और कटघोरा वनमंडलों में कुल 100 हाथी विचरण कर रहे हैं। पहले वे कोरबा आकर लौट जाते थे, पर अब वे वहीं रुक रहे हैं।
विकास कार्यों के कारण उनके पुराने रास्ते समाप्त हो गए हैं, जिससे वे नए मार्ग बना रहे हैं। इन नए मार्गों को पहचानना, हाथियों के व्यवहार को समझना, और बदलाव के अनुसार योजनाएं बनाना वन विभाग के लिए बड़ी चुनौती है।
निष्कर्ष
हाथियों की सुरक्षा केवल वन्य जीव संरक्षण नहीं, बल्कि पूरे ईकोसिस्टम और मानव जीवन की सुरक्षा है। यदि हाथी विलुप्त हो गए, तो जंगल खत्म होंगे और मानव जीवन पर सीधा संकट आएगा। ऐसे में हमें विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाना ही होगा।
छत्तीसगढ़ इनसाइड न्यूज़ के वाट्सअप ग्रुप में एड होने के लिए क्लिक करे
Source -ETV