
Crude Oil Prices -कच्चे तेल की गिरती कीमतों का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: रिपोर्ट में बड़े संकेत
दुनियाभर में भू-राजनीतिक परिस्थितियों में उतार-चढ़ाव, जैसे कि ट्रंप टैरिफ नीतियाँ, भारत-पाक तनाव, अमेरिका-चीन व्यापार संबंधों में गतिरोध और रूस-यूक्रेन वार्ता ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को अस्थिरता के दौर में पहुंचा दिया है। विशेषज्ञों की मानें तो यह अस्थिरता वैश्विक मंदी की आशंका को बढ़ा रही है। इसी पृष्ठभूमि में कच्चे तेल (Crude Oil) की कीमतों में हालिया गिरावट वैश्विक बाजारों पर गहरा प्रभाव डाल सकती है।
तेल की कीमतों में गिरावट क्यों आई?
बीते कुछ समय में अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमतें गिरकर 63-64 डॉलर प्रति बैरल के बीच पहुँच चुकी हैं। बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि मांग में कमी और आपूर्ति की अधिकता इसका मुख्य कारण है।
वेटूवेल्थ ब्रोकर्स, श्रीराम ग्रुप की एक सहयोगी संस्था, ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि अमेरिका-ईरान प्रतिबंधों में ढील के चलते व्यापार की संभावना बढ़ी है, जिससे ईरानी तेल का निर्यात बढ़ने की उम्मीद है। इसका सीधा असर अमेरिकी कच्चे तेल के भंडार पर पड़ा है, जिसमें अप्रत्याशित रूप से वृद्धि दर्ज की गई है।
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) द्वारा आपूर्ति पूर्वानुमानों में संशोधन से भी कीमतों में गिरावट आई है। बाजार पर अब मांग के दबाव का असर दिखने लगा है, जिससे वैश्विक आर्थिक गतिविधियों के प्रभावित होने की आशंका बढ़ रही है।
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
एंजेल वन लिमिटेड के नॉन-एग्री कमोडिटी और करेंसी विशेषज्ञ प्रथमेश माल्या के अनुसार, अमेरिका में कच्चे तेल के भंडार में अचानक बढ़ोतरी से निवेशकों में चिंता की लहर दौड़ गई है। ईरान-अमेरिका परमाणु समझौते की संभावनाओं ने वैश्विक आपूर्ति बढ़ने की आशंका को बल दिया है।
वहीं, OPEC+ देश भी अपने उत्पादन में कटौती को धीरे-धीरे समाप्त कर रहे हैं, जिससे सप्लाई का दबाव और बढ़ सकता है। हालांकि, OPEC ने अमेरिका और अन्य गैर-OPEC देशों से होने वाली आपूर्ति को लेकर अपने पूर्वानुमानों में कटौती की है, लेकिन फिर भी सप्लाई की अधिकता से कीमतों में नरमी बनी रह सकती है।
ग्लोबल इकोनॉमी पर संभावित प्रभाव
एमके वेल्थ मैनेजमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका की टैरिफ नीतियों और वैश्विक मांग में स्थिरता की कमी से तेल की कीमतें दबाव में हैं। चीन, जो परंपरागत रूप से तेल का सबसे बड़ा खरीदार रहा है, उसकी GDP ग्रोथ रेट 5% से नीचे गिरने के बाद कच्चे तेल की मांग में कमी आई है।
साथ ही, इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती मांग और ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की ओर झुकाव ने तेल की उपयोगिता पर दीर्घकालिक दबाव बना दिया है।
आईएफएससी एलएलपी के फंड मैनेजर अर्थ भारत कहते हैं कि अमेरिका में बजट और व्यापार घाटे जैसी समस्याएं पिछले कई वर्षों से बनी हुई हैं। ट्रंप सरकार के पहले कार्यकाल में इन मुद्दों को नजरअंदाज किया गया, लेकिन अब उन्हें सुलझाने की कोशिशें हो रही हैं। इसी क्रम में भारत और चीन पर टैरिफ लगाए गए, जो बाद में घटाकर क्रमशः 10% और 30% कर दिए गए। इस तरह के उतार-चढ़ाव से वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता बढ़ी है।
तेल की मौजूदा कीमत और ट्रेंड
17 मई 2025 को ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत 65.39 डॉलर प्रति बैरल और WTI क्रूड ऑयल की कीमत 62.49 डॉलर प्रति बैरल रही। रिपोर्ट बताती है कि ट्रंप सरकार और ईरान के बीच चल रही शांति वार्ताओं में प्रगति से कीमतों पर और दबाव पड़ा है। वहीं IEA द्वारा की गई नई आपूर्ति वृद्धि (38,000 बैरल प्रतिदिन) ने भी तेल बाजार में गिरावट को बल दिया है।
निष्कर्ष:
कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट केवल आर्थिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और रणनीतिक बदलावों का परिणाम है। इसकी वजह से वैश्विक आपूर्ति-मांग संतुलन बिगड़ रहा है, जिससे व्यापार, मुद्रा, उत्पादन लागत और देशों की आर्थिक नीतियों पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। यदि यह ट्रेंड जारी रहा, तो आने वाले समय में वैश्विक मंदी की आशंका और प्रबल हो सकती है।
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