CM Yogi Caste Based Rally -लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा है कि राज्य में अगर कोई राजनीतिक दल जाति आधारित रैली आयोजित करता है, तो सरकार उसकी रोकथाम के लिए क्या कदम उठाएगी? अदालत ने इस मामले में योगी सरकार से तीन दिनों के भीतर जवाब मांगा है और कहा है कि अगर समय पर हलफनामा दाखिल नहीं किया गया, तो संबंधित प्रमुख सचिव को अगली सुनवाई पर अदालत में हाजिर होना पड़ेगा।
⚖️ कोर्ट ने जताई नाराजगी, कहा – अब तक स्पष्ट जवाब क्यों नहीं दिया गया?
न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति राजीव भारती की खंडपीठ ने शुक्रवार को स्थानीय अधिवक्ता मोतीलाल यादव की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से कड़ी नाराजगी जताई।
कोर्ट ने कहा कि पहले दिए गए आदेशों के बावजूद यह स्पष्ट नहीं किया गया कि सरकार ऐसी रैलियों के खिलाफ क्या कार्रवाई करेगी।
अदालत ने अगली सुनवाई की तारीख 30 अक्टूबर 2025 तय की है।
📄 हाईकोर्ट ने फिर दोहराया – 2013 से लगा है जाति आधारित रैलियों पर प्रतिबंध
अदालत ने याद दिलाया कि 11 जुलाई 2013 को ही जाति आधारित रैलियों पर स्पष्ट प्रतिबंध लगाया जा चुका है।
उस आदेश में अदालत ने कहा था कि जाति व्यवस्था समाज को विभाजित करती है और भेदभाव को बढ़ावा देती है। इसलिए राजनीतिक दलों द्वारा जाति के नाम पर रैलियां आयोजित करना संविधान की भावना और मौलिक अधिकारों के खिलाफ है।
🏛️ राज्य सरकार ने क्या कहा?
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के वकील ने अदालत को बताया कि सरकार ने 21 सितंबर 2025 को एक सरकारी आदेश (G.O.) जारी कर दिया है, जिसमें राजनीतिक उद्देश्यों के लिए जाति आधारित रैलियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है।
हालांकि, इस पर अदालत ने सवाल उठाया कि जब आदेश जारी किया जा चुका है, तो इस संबंध में हलफनामा दाखिल करने में देरी क्यों की जा रही है। अदालत ने साफ कहा कि अगर सरकार अपने आदेश का पालन सुनिश्चित नहीं करती, तो इसे गंभीरता से लिया जाएगा।
🗳️ निर्वाचन आयोग ने भी जताई थी सख्ती
पिछली सुनवाई के दौरान निर्वाचन आयोग (Election Commission) ने भी अदालत को बताया था कि आदर्श आचार संहिता के तहत जाति आधारित रैलियों पर पूरी तरह से प्रतिबंध है।
हालांकि, आयोग ने यह भी स्पष्ट किया था कि इस मामले में कार्रवाई का अधिकार राज्य सरकार के पास है।
अदालत ने इस पर कहा था कि जब आयोग और सरकार दोनों इस बात से सहमत हैं कि जाति आधारित रैलियां असंवैधानिक हैं, तो फिर व्यवहार में ऐसी गतिविधियों को रोकने के लिए ठोस कदम क्यों नहीं उठाए गए?
🧾 सरकार से 3 दिनों में जवाब दाखिल करने का आदेश
खंडपीठ ने सरकार को निर्देश दिया है कि वह सात अगस्त 2024 के आदेश के अनुपालन में तीन दिनों के भीतर हलफनामा दाखिल करे।
अगर ऐसा नहीं किया गया, तो संबंधित प्रमुख सचिव को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित होना होगा।
⚠️ अदालत का सख्त संदेश — “जाति के नाम पर राजनीति असंवैधानिक”
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने पुराने आदेश का हवाला देते हुए कहा कि जाति आधारित राजनीति संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
कोर्ट ने टिप्पणी की —
“जाति व्यवस्था समाज को विभाजित करती है और भेदभाव पैदा करती है। ऐसी रैलियों की अनुमति देना संविधान की भावना और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।”
📅 अगली सुनवाई 30 अक्टूबर को
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 30 अक्टूबर 2025 तय की है। इस दिन सरकार को यह बताना होगा कि अगर किसी भी राजनीतिक दल ने जाति आधारित रैली आयोजित की तो उसके खिलाफ क्या ठोस कदम उठाए जाएंगे।
