
Child Maintenance
Child Maintenance -HIV संक्रमित होने का हवाला देकर बेटी को भरण-पोषण देने से मना किया, हाईकोर्ट बोला- यह नैतिक जिम्मेदारी है
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक कांस्टेबल की पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। फैमिली कोर्ट ने कांस्टेबल को उसकी 6 साल की बेटी को ₹5000 प्रतिमाह भरण-पोषण देने का आदेश दिया था। कांस्टेबल ने अपनी याचिका में कहा था कि वह HIV संक्रमित है और उसका इलाज महंगा है, इस वजह से वह भरण-पोषण नहीं दे सकता। इसके साथ ही उसने यह भी दावा किया कि वह बच्ची का जैविक पिता नहीं है।
❖ हाईकोर्ट ने कहा – पिता की जिम्मेदारी से नहीं भाग सकते
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा की एकलपीठ ने याचिकाकर्ता के तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि:
“बेटी को भरण-पोषण देना केवल कानूनी नहीं बल्कि नैतिक जिम्मेदारी भी है। याचिकाकर्ता यह साबित नहीं कर सका कि बच्ची उसकी नहीं है। इसलिए उसे बच्ची के पालन-पोषण के लिए सहायता देनी ही होगी।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि फैमिली कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों और साक्ष्यों को देखकर ही उचित निर्णय लिया था।
❖ मामला क्या है?
यह केस बलरामपुर निवासी कांस्टेबल से जुड़ा है, जो वर्तमान में कोण्डागांव पुलिस बल में कार्यरत है। उसकी पत्नी, जो अंबिकापुर की रहने वाली है, ने धारा 125 CrPC के तहत फैमिली कोर्ट में भरण-पोषण की याचिका दायर की थी। पत्नी ने आरोप लगाया था कि पति ने उसे और 6 साल की बेटी को छोड़ दिया है और कोई आर्थिक सहायता नहीं दे रहा है।
पत्नी ने ₹30,000 प्रतिमाह की मांग की थी, परंतु फैमिली कोर्ट ने 9 जून 2025 को केवल बेटी के लिए ₹5000 मासिक भरण-पोषण देने का आदेश जारी किया।
❖ कांस्टेबल ने याचिका क्यों दायर की?
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा:
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वह HIV संक्रमित है, और इलाज का खर्च अत्यधिक है।
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दावा किया कि बेटी उसकी नहीं है।
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भरण-पोषण देना उसके लिए आर्थिक रूप से संभव नहीं है।
परंतु वह यह साबित नहीं कर सका कि बच्ची उसकी नहीं है। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को सही और वैध बताया।
❖ निष्कर्ष
हाईकोर्ट ने कहा कि:
“नाबालिग बेटी के पालन-पोषण और शिक्षा के लिए पिता की जिम्मेदारी तय है। इलाज का खर्च भरण-पोषण से बड़ी जिम्मेदारी नहीं हो सकती।”
इस प्रकार, कांस्टेबल की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी गई और फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखा गया।
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