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छत्तीसगढ़ में लंबे समय से रुकी हुई प्राचार्य पदोन्नति प्रक्रिया अब अंतिम मोड़ पर नजर आ रही है। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में जस्टिस रविन्द्र कुमार अग्रवाल की अदालत में आज फिर सुनवाई हुई, जिसमें 2813 प्राचार्यों की पदोन्नति को लेकर चर्चा हुई। ये सभी शिक्षक 30 अप्रैल 2025 को जारी आदेश के तहत पदोन्नत किए गए थे, लेकिन अब तक उनकी पोस्टिंग नहीं हो पाई है।
सुनवाई के दौरान अतिरिक्त महाधिवक्ता ने अदालत को बताया कि इस प्रकृति के सभी प्रकरणों में डबल बेंच पहले ही निर्णय दे चुकी है और स्टे हटा चुकी है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि नियमों के अनुसार कोई बाधा नहीं है और सभी आपत्तियां पहले ही खारिज की जा चुकी हैं।
डबल बेंच की सुनवाई 9 जून से 17 जून तक चली थी, जिसमें दोनों पक्षों ने अपने-अपने पक्ष मजबूती से रखे थे। 17 जून को फैसला सुरक्षित रखा गया था और बाद में न्यायालय ने सरकार के पक्ष में निर्णय देते हुए पदोन्नति आदेश पर से स्थगन हटा लिया था। न्यायालय ने नियम 15 की स्पष्ट व्याख्या करने को भी कहा था।
आज की सुनवाई में याचिकाकर्ता नारायण प्रसाद तिवारी की ओर से दस्तावेजी साक्ष्य में कमियों पर न्यायालय ने असंतोष जताया और तैयारी के साथ पेश होने के निर्देश दिए। सुनवाई के समय की कमी को देखते हुए न्यायालय ने अगली सुनवाई के लिए 29 जुलाई को दोपहर 3:30 बजे का समय निर्धारित किया है।
इस फैसले का इंतजार न केवल 2813 पदोन्नत प्राचार्यों को है, बल्कि पूरे शिक्षक समुदाय और शिक्षा विभाग की निगाहें भी इसी पर टिकी हैं। नए शिक्षा सत्र की शुरुआत हो चुकी है और अनेक स्कूलों में प्राचार्य पद खाली पड़े हैं, ऐसे में पदस्थापना का शीघ्र निर्णय जरूरी हो गया है।
छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष संजय शर्मा ने भी इस मुद्दे को लेकर स्कूल शिक्षा सचिव व संचालक लोक शिक्षण से मुलाकात की है। उन्होंने पदोन्नति में विलंब को शैक्षणिक व्यवस्था के लिए नुकसानदायक बताया।
हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई में संजय शर्मा के साथ-साथ मनोज सनाढ्य, मुकेश पांडेय, रामगोपाल साहू, राजेश शर्मा, चिंताराम कश्यप, चंद्रशेखर गुप्ता, तोषण गुप्ता, अनामिका तिवारी और मोहन तिवारी जैसे शिक्षक नेता सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
अब देखना यह होगा कि क्या 29 जुलाई को अदालत से इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय आता है, जिससे हजारों शिक्षकों की प्रतीक्षा समाप्त होगी और शिक्षा व्यवस्था को स्थायित्व मिलेगा।
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