
छत्तीसगढ़ वन विभाग में फर्जी यूनियन का खुलासा: हजारों कर्मचारियों से की गई ठगी, प्रशासन की भूमिका पर उठे सवाल
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक आरटीआई आवेदन के जरिए वन विभाग से जुड़ा बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। यह मामला केवल एक फर्जी संगठन की पहचान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि कैसे एक योजनाबद्ध तरीके से हजारों दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के भविष्य और विश्वास से खिलवाड़ किया गया।
फर्जी यूनियन का सच
“छ.ग. दैनिक वेतन भोगी वन कर्मचारी संघ (पंजीयन क्रमांक 548)” नामक संगठन को वर्षों तक एक वैध यूनियन के रूप में प्रस्तुत किया गया। लेकिन आरटीआई दस्तावेजों से स्पष्ट हुआ है कि ऐसा कोई संगठन विधिवत रूप से कभी पंजीकृत ही नहीं हुआ। बावजूद इसके, इस यूनियन ने शासन को पत्र भेजे, आंदोलनों का नेतृत्व किया, अदालतों में याचिकाएं दायर कीं और कर्मचारियों से रकम वसूलती रही।
मुख्य आरोपी: रामकुमार सिन्हा
इस पूरे घोटाले का मुख्य किरदार रामकुमार सिन्हा है, जो खुद को “प्रांताध्यक्ष” बताकर कर्मचारियों से ₹300 से ₹500 तक वसूलता रहा। ये वसूली कभी सदस्यता शुल्क, कभी हड़तालों में भागीदारी, तो कभी अधिकारों की रक्षा के नाम पर की जाती रही। यूनियन के पास न तो कोई वैध पंजीयन है, न कोई लेखा-जोखा, और न ही कोई ऑडिट रिकॉर्ड। लाखों रुपये की यह वसूली कहां गई, इसका कोई प्रमाण नहीं है।
प्रशासन की चुप्पी पर उठे सवाल
सबसे बड़ा सवाल यह है कि बिना पंजीकरण के संगठन को प्रशासन ने कैसे मान्यता दी? वर्षों तक उसके पत्रों को गंभीरता से क्यों लिया गया? यह सिर्फ लापरवाही है या फिर उच्च अधिकारियों की मिलीभगत?
बिंदेश्वरी वैष्णव का साहस
इस फर्जीवाड़े का खुलासा करने वाली वन विभाग की महिला कर्मचारी बिंदेश्वरी वैष्णव का आरोप है कि रामकुमार सिन्हा ने न सिर्फ पैसे वसूले, बल्कि झूठे वादों और भावनात्मक शोषण के जरिए कर्मचारियों को भ्रमित किया।
अब उठते हैं कई अहम सवाल:
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क्या रामकुमार सिन्हा और उसके साथियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होगी?
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क्या आर्थिक अपराध शाखा (EOW) इस मामले की जांच करेगी?
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क्या शासन फर्जी यूनियनों के खिलाफ कोई ठोस अभियान चलाएगा?
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और क्या यह मामला कार्रवाई तक पहुंचेगा या केवल कागज़ों में दब जाएगा?
यह मामला केवल वन विभाग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह चेतावनी है कि यदि ऐसे फर्जी संगठनों को रोका नहीं गया, तो अन्य विभागों में भी ऐसी ठगी दोहराई जा सकती है। अब वक्त है कि ऐसे लोगों को कानून के कठघरे में लाया जाए और कर्मचारियों को उनका हक और सम्मान लौटाया जाए।