Chhattisgarh Conversion Human Trafficking Case -छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण और मानव तस्करी के मामले पर सियासी बवाल: ननों की गिरफ्तारी पर वामपंथी दलों का विरोध
रायपुर/दुर्ग: छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में कथित धर्मांतरण और मानव तस्करी के मामले ने प्रदेश से लेकर दिल्ली तक सियासी हलचल मचा दी है। इस प्रकरण में दो कैथोलिक ननों और एक युवक की गिरफ्तारी के बाद देशभर के विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध जताया है। वामपंथी सांसदों ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है।
ननों की गिरफ्तारी से बढ़ा विवाद

25 जुलाई को दुर्ग रेलवे स्टेशन पर बजरंग दल के पदाधिकारी रवि निगम की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए जीआरपी पुलिस ने दो कैथोलिक सिस्टर, एक युवक और तीन आदिवासी लड़कियों को हिरासत में लिया। आरोप था कि ये लोग आदिवासी किशोरियों को बहला-फुसलाकर आगरा (उत्तर प्रदेश) ले जा रहे थे, जहाँ कथित तौर पर धर्मांतरण की योजना थी।
बजरंग दल ने दावा किया कि तीनों लड़कियां नारायणपुर जिले के ओरछा गांव की रहने वाली हैं, और सभी की उम्र नाबालिग है। उनके माता-पिता को इस यात्रा की कोई जानकारी नहीं थी।
जीआरपी ने दर्ज किया केस, कोर्ट ने खारिज की जमानत
पुलिस ने प्रारंभिक जांच के बाद ननों और युवक पर भारतीय दंड संहिता की धारा 143 बीएनएस और मानव तस्करी के आरोप में मामला दर्ज किया। ननों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया, जबकि उनकी जमानत याचिका सेशन कोर्ट द्वारा अस्वीकृत कर दी गई। कोर्ट ने यह मामला एनआईए कोर्ट, बिलासपुर को संदर्भित करने की बात कही।
संसद में गूंजा मामला, विपक्ष ने किया प्रदर्शन
31 जुलाई को संसद भवन परिसर में, कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल, आरएसपी सांसद एनके प्रेमचंद्रन, और आईयूएमएल नेता ईटी मोहम्मद बशीर समेत यूडीएफ सांसदों ने विरोध प्रदर्शन किया। पोस्टर में लिखा था – “अल्पसंख्यकों पर हमले बंद करो”।
कांग्रेस नेता ने कहा, “यह गिरफ्तारी न्याय के खिलाफ है। हम ननों की तत्काल रिहाई की मांग करते हैं।”
अमित शाह और सीएम साय को भेजा गया पत्र

इस मुद्दे को गंभीर बताते हुए वामपंथी सांसदों ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को पत्र लिखकर मांग की कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की जाए और इस प्रकार की दुर्भावनापूर्ण कार्रवाइयों को रोका जाए।
सीपीआई, कांग्रेस ने सरकार पर साधा निशाना
सीपीआई नेता वृंदा करात और कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने दुर्ग केंद्रीय जेल जाकर ननों से मुलाकात की और सरकार पर आरोप लगाया कि यह गिरफ्तारी राजनीति से प्रेरित और धार्मिक पूर्वाग्रह का परिणाम है।
वृंदा करात ने कहा, “यह अन्याय है। बिना ठोस सबूत के ननों को जेल में डाल देना अल्पसंख्यकों पर हमला है। सरकार आदिवासियों और ईसाई समुदायों को निशाना बना रही है।”
निष्कर्ष:
इस घटना ने राज्य में धर्मांतरण कानून, अल्पसंख्यक अधिकार, और मानवाधिकारों को लेकर गहन बहस छेड़ दी है। एक ओर जहां बजरंग दल इसे कानून व्यवस्था का विषय बता रहा है, वहीं विपक्ष इसे राजनीतिक प्रतिशोध और धार्मिक भेदभाव बता रहा है।
