
CG Holidays News: सरकारी दफ्तरों में छुट्टियों की भरमार से बिगड़ा सिस्टम, फाइव डे वीक पर संकट
छत्तीसगढ़ के सरकारी कार्यालयों में सप्ताह में दो दिन की छुट्टी यानी शनिवार और रविवार के चलते सरकारी कामकाज गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है। आम नागरिकों को समय पर सरकारी कर्मचारियों के कार्यालय में अनुपस्थित रहने के कारण काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। हाल ही में 11 दिनों में केवल चार दिन कार्यालय खुले, जबकि सात दिन अवकाश रहा, जिससे मंत्रालय और विभागीय कार्यों पर सीधा असर पड़ा।
राज्य में ऐसी स्थिति बन गई है कि छुट्टियों की अधिकता ने कामकाज को लगभग ठप कर दिया है। सुबह 10 बजे कार्यालय खुलने का समय है, मगर कर्मचारी 11 बजे से पहले नजर नहीं आते, और पांच बजे की बजाय साढ़े चार बजे ही निकलने लगते हैं। बायोमेट्रिक हाजिरी की व्यवस्था लागू नहीं हो पाई है, न ही अधिकारी और न ही कर्मचारी इसके लिए तैयार हैं। इससे राज्य की कार्य संस्कृति में गिरावट आ रही है।
फाइव डे वीक से अव्यवस्था
राजधानी रायपुर समेत पूरे छत्तीसगढ़ में फाइव डे वीक और विभिन्न प्रकार के राष्ट्रीय व स्थानीय अवकाशों के चलते आमजन को सरकारी दफ्तरों में चक्कर काटने पड़ते हैं। ऑफिस में समय पर बाबू मिलना भी मुश्किल हो गया है। जब किसी सप्ताह में शुक्रवार या सोमवार को छुट्टी हो जाती है, तो लगातार तीन दिन दफ्तर बंद रहते हैं। जैसे—10 मई (शनिवार), 11 मई (रविवार), और 12 मई (सोमवार, बुद्ध पूर्णिमा)। इससे पहले अप्रैल में भी ऐसा ही दृश्य रहा—11 में से 7 दिन छुट्टी रही।
स्थानीय छुट्टियों की अधिकता
पिछली सरकार ने कर्मचारियों को खुश करने के लिए फाइव डे वीक तो लागू कर दिया, मगर समय पालन पर कोई सख्त व्यवस्था नहीं की। छोटे-मोटे त्यौहारों पर भी पूरे दिन की छुट्टी घोषित कर दी गई। नतीजा यह हुआ कि योजनाओं और परियोजनाओं पर काम की गति रुकने लगी। काम करना भी चाहें तो छुट्टियों के चलते कार्य अवरुद्ध हो जाता है।
फाइव डे वीक खत्म हो सकता है?
दिसंबर 2023 में सरकार बदलने के बाद से फाइव डे वीक को लेकर पुनर्विचार की चर्चा तेज हो गई है। अब आधिकारिक स्तर पर यह प्रस्ताव सामने आ रहा है कि प्रदेश हित में इस व्यवस्था को खत्म कर पुनः प्रत्येक महीने के दूसरे और चौथे शनिवार को छुट्टी वाली प्रणाली को लागू किया जाए।
केंद्र की नकल, मगर टाईमिंग नहीं अपनाई
राज्य सरकार ने केंद्र सरकार की तर्ज पर फाइव डे वीक तो अपना लिया, लेकिन केंद्रीय संस्थानों की तरह कार्य समय को लागू नहीं किया। रायपुर में ही केंद्रीय संस्थानों के कर्मचारी सुबह 9 बजे कार्यालय पहुंच जाते हैं और शाम 5 बजे तक डटे रहते हैं। बायोमेट्रिक हाजिरी भी अनिवार्य है। इसके उलट राज्य के कार्यालयों में बायोमेट्रिक जैसे शब्दों से ही नेतागिरी शुरू हो जाती है। काम करने की इच्छाशक्ति का अभाव साफ नजर आता है।
सरकार को भी नहीं मिला फायदा
भूपेश बघेल सरकार ने कर्मचारियों को अवकाश की सौगातें दीं, लेकिन इसका राजनीतिक लाभ नहीं मिल पाया। विधानसभा चुनाव में बीजेपी पहले से ज्यादा सीटें जीतकर सत्ता में लौट आई। इस बात से यह भी संकेत मिलता है कि आम कर्मचारी और उनके परिजन भी छुट्टियों की अधिकता से खुश नहीं थे, वरना वोट कांग्रेस को मिलते।
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