
सीजफायर के बाद कश्मीर में लौटने लगी सामान्य स्थिति, लेकिन डर अभी भी कायम
तारीख: 10 मई, 2025। श्रीनगर का लाल चौक और डल लेक, जो आमतौर पर लोगों और पर्यटकों से भरे रहते हैं, आज एकदम सुनसान दिखे। सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ था—ना स्थानीय लोग और ना ही टूरिस्ट। इसकी प्रमुख वजह रही पाकिस्तान की ओर से हो रहे मिसाइल और ड्रोन हमलों की आशंका। पाकिस्तान द्वारा 8 मई से रात के समय गोलाबारी की जा रही थी, लेकिन 10 मई को दिन में भी धमाकों की आवाज़ें सुनाई दीं।
शाम करीब 5:30 बजे भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम (सीजफायर) पर सहमति बनी। इसके तुरंत बाद श्रीनगर और आसपास के इलाकों में बाजार खुलने लगे, लोग घरों से बाहर निकले और खरीदारी शुरू हुई। लेकिन रात 8 बजे के बाद दोबारा धमाके सुनाई दिए और आसमान में ड्रोन देखे गए, जिससे फिर से अफरातफरी मच गई। लोग जल्दबाज़ी में दुकानें बंद कर घर लौटने लगे और सड़कों पर एक बार फिर सन्नाटा पसर गया।
रात 11 बजे तक यह स्थिति बनी रही। इसके बाद से कश्मीर में शांति देखी गई है। एलओसी के पास रहने वाले लोग चार दिन बाद अपने बंकरों से बाहर आए हैं। इस युद्धविराम के प्रति आम नागरिकों के विचार जानने के लिए संवाददाता ने जम्मू-कश्मीर और पंजाब के सीमावर्ती इलाकों का दौरा किया।
कश्मीर में नागरिकों की प्रतिक्रिया: “पाकिस्तान पर अब भरोसा नहीं”
11 मई, रविवार को संवाददाता श्रीनगर के राजबाग इलाके में पहुँचे। यहां एक सैलून संचालक ने बताया कि उनकी दुकान पहले रात 10 बजे के बाद ही बंद होती थी, लेकिन हालात की वजह से उन्हें जल्दी बंद करनी पड़ी। उन्होंने कहा, “सीजफायर की खबर सुनकर राहत महसूस हुई थी, लेकिन रात 8:30 बजे जैसे ही धमाके शुरू हुए, दुकान बंद करनी पड़ी और लाइट बंद करके घर लौटना पड़ा।”
इसके बाद लाल चौक का रुख किया गया, जहां हर रविवार को साप्ताहिक बाजार लगता है। एक स्थानीय दुकानदार ने बताया कि पहले डर था कि शायद बाजार न लग पाए, लेकिन माहौल शांत देखकर उन्होंने दुकान खोली। हालांकि टूरिस्ट की संख्या अभी भी काफी कम है।
डल लेक क्षेत्र में एक शिकारा चालक ने चिंता जताई कि जब भी भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव होता है, तो सबसे अधिक नुकसान कश्मीर के आम लोगों को होता है। उन्होंने कहा, “हमारा रोजगार, घर और जीवन सब खतरे में पड़ जाते हैं। सीजफायर हुआ, लेकिन मन में यह डर बना हुआ है कि पाकिस्तान फिर कब हमला कर दे।”
एक अन्य शिकारा मालिक ने बताया, “हम सिर्फ अप्रैल से दिसंबर तक शिकारा चलाते हैं और एक शिकारा तैयार करने में लाखों रुपये खर्च होते हैं। अब जब सीजन शुरू हुआ है, तब टूरिस्ट नहीं आ रहे। हमें डर है कि कहीं पूरी सीजन बर्बाद न हो जाए।”
एलओसी के पास: बंकर से बाहर आए लोग
कृष्णा घाटी में रहने वाले मोहम्मद गज्जाफी ने बताया कि सीजफायर के बाद 10 मई की शाम को वह और उनका परिवार चार दिन बाद बंकर से बाहर आए। उन्होंने कहा, “अब माहौल शांत है और दिनभर कोई गोलीबारी नहीं हुई। हम घरों से बाहर भी निकले हैं। उम्मीद है कि शांति बनी रहे।”
कुपवाड़ा के निवासी रियाज अहमद ने युद्ध को विनाशकारी बताया और कहा, “सीमा पर रहने वाले लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। युद्ध में घर गिरते हैं, जानें जाती हैं और जवान शहीद होते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि शांति बनी रहे।”
जम्मू में राहत की सांस, लेकिन डर बाकी
11 मई की सुबह जम्मू शहर की पिछली दो सुबहों से अलग थी। न कोई धमाका और न ही ड्रोन की उड़ान। गांधीनगर, शास्त्री नगर, नरवाल, बक्शी नगर और रिहाड़ी जैसे इलाकों में सामान्य स्थिति लौटती दिखी। बाजार खुले, होटल और मंदिरों में हलचल शुरू हुई।
हालांकि, फल विक्रेता ओमप्रकाश का कहना है कि अभी भी बाजार पूरी तरह सामान्य नहीं हुए हैं। ढाबे पर काम करने वाले कुक्कू ने कहा, “रात को डर लग रहा था, लेकिन अब हालात थोड़े ठीक हैं।”
रेहड़ी वाले रामपाल ने बताया कि वह आज दुकान खोलने नहीं आए थे, सिर्फ हालात का जायजा लेने आए थे। वहीं टैक्सी चालक हरपाल सिंह ने बताया कि सिर्फ तीन दिन में ही उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा।
पुंछ में लोग लौटने लगे गांव
पुंछ जिले के सीमावर्ती गांव बहेंछ के निवासी मोहम्मद आजम ने बताया कि लड़ाई के दौरान कई मासूम मारे गए और गांव खाली हो गए थे। अब लोग धीरे-धीरे लौट रहे हैं। उन्होंने कहा, “हमने दो-तीन दिन से ठीक से खाना नहीं खाया, और रात को कोई सो नहीं पाया।”
गांव के एक अन्य निवासी आलम ने कहा, “हमारा गांव एलओसी के इतने करीब है कि शेलिंग सीधे घरों पर होती है। बच्चों और बुजुर्गों को एक कमरे में बंद करना पड़ता है।”
पंजाब में कारोबारियों की चिंता और उम्मीद
पठानकोट के कारोबारी नरेश अरोड़ा ने कहा, “मेरे व्यवसाय को नुकसान हुआ, लेकिन हम देश के लिए हर त्याग को तैयार हैं। युद्ध समाधान नहीं है, लेकिन आतंकवाद का खात्मा जरूरी है।”
होटल कारोबारी विकास महाजन ने कहा कि पहले टूरिस्ट नियमित आते थे, लेकिन अब होटल कारोबार पूरी तरह से ठप हो गया है। उन्होंने कहा, “ब्लैकआउट के चलते होटल शाम को ही बंद करने पड़ते हैं। ग्राहक नहीं आ रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि सीजफायर जरूरी है क्योंकि इससे दोनों देशों का नुकसान रुक सकता है, लेकिन जब तक डर दूर नहीं होता, सामान्य स्थिति बहाल नहीं हो सकती।
बॉर्डर इलाकों में राहत की शुरुआत
सीजफायर के बाद से बॉर्डर इलाकों में तनाव कम हुआ है। पठानकोट में किराना व्यापारी अनूप महाजन ने बताया कि हालात बहुत खराब थे, और खासकर गरीब वर्ग को भारी नुकसान झेलना पड़ा। उन्होंने कहा, “कुछ लोग आर-पार की लड़ाई की बात करते हैं, लेकिन सरकार को सभी पहलुओं को देखना होता है।”
राजस्थान में भी हालात सामान्य, ट्रेनें बहाल
राजस्थान के सीमावर्ती जिलों जैसलमेर, बाड़मेर, श्रीगंगानगर, बीकानेर और जोधपुर में बाजार फिर से खुलने लगे हैं। आम दिनों की तरह चहल-पहल लौट रही है। कुछ रद्द की गई ट्रेन सेवाएं भी बहाल कर दी गई हैं।
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