
Caste Census Tension: भारत में जाति जनगणना: सिर्फ ब्राह्मण-ठाकुर नहीं, सैय्यद-पठान भी चिंतित
भारत में होने जा रही जातिगत जनगणना का असर न केवल हिंदू समुदाय पर पड़ेगा बल्कि मुस्लिम समाज भी इससे अछूता नहीं रहेगा। केंद्र सरकार द्वारा मंजूर इस जनगणना में धर्म के साथ-साथ जाति की भी जानकारी दर्ज की जाएगी, जिससे विभिन्न समुदायों की आबादी और उनकी सामाजिक स्थिति का स्पष्ट आंकलन किया जा सकेगा। इससे भविष्य में आरक्षण नीतियों में बदलाव की संभावना जताई जा रही है। ब्राह्मण-ठाकुर के साथ-साथ सैय्यद और पठान जैसे उच्चवर्गीय मुस्लिम समुदायों के लिए भी यह जनगणना चिंता का विषय बन गई है।
जातिगत आंकड़े पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर
आज़ादी के बाद पहली बार केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का निर्णय लिया है, जिसे कैबिनेट से भी मंजूरी मिल चुकी है। अब न केवल हिंदुओं की जातियों की गणना होगी बल्कि मुस्लिम समुदाय की विभिन्न जातियों का भी आंकलन किया जाएगा। बिहार और तेलंगाना जैसे राज्यों में पहले से हुई जाति आधारित सर्वे में यह देखा गया था कि मुसलमानों की जातियों के भी विस्तृत आंकड़े सामने आए थे।
सवर्ण मुस्लिम जातियां भी होंगी प्रभावित
ब्राह्मण, क्षत्रिय, कायस्थ जैसे हिंदू सवर्णों की तरह शेख, सैय्यद, पठान जैसी मुस्लिम सवर्ण जातियां भी इस प्रक्रिया से प्रभावित होंगी। इन जातियों को आरक्षण की व्यवस्था में शामिल नहीं किया गया है, जबकि पसमांदा मुस्लिम (मुस्लिम ओबीसी) पहले से ही राज्य और केंद्र की पिछड़ा वर्ग सूची में शामिल हैं। यह जनगणना इन वर्गों की स्थिति को लेकर स्पष्ट और प्रमाणिक आंकड़े प्रस्तुत करेगी।
मुस्लिम समुदाय में जातिगत वर्गीकरण
मुस्लिम समाज तीन प्रमुख वर्गों में विभाजित है:
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अशराफ (उच्च जाति) – जैसे सैय्यद, शेख, पठान, तुर्क, मुगल आदि।
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पसमांदा (पिछड़े वर्ग) – जैसे अंसारी, कुरैशी, मंसूरी, दर्जी, तेली, सैफी आदि।
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अजलाल (अति पिछड़े वर्ग) – जैसे धोबी, मेहतर, भंगी, मोची, नट, हलालखोर आदि।
अब तक जनगणनाओं में मुस्लिमों की केवल धार्मिक पहचान दर्ज की जाती थी, लेकिन इस बार उनकी जातियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति भी दर्ज होगी।
आरक्षण नीति में बदलाव की आशंका
जनगणना के बाद जातियों की वास्तविक जनसंख्या के आधार पर आरक्षण की मांग तेज हो सकती है। ओबीसी के लिए वर्तमान में 27% आरक्षण तय है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कुल आरक्षण सीमा 50% तय कर रखी है। नए आंकड़ों के बाद यह सीमा बढ़ाने की मांग उठ सकती है, जिससे ब्राह्मण, ठाकुर, कायस्थ जैसे हिंदू सवर्णों के साथ शेख, सैय्यद, पठान जैसे मुस्लिम सवर्णों की चिंता बढ़ेगी।
पसमांदा बनाम अशराफ की नई बहस
अगर यह प्रमाणित होता है कि मुस्लिमों में 80-85% आबादी पसमांदा वर्ग की है, तो अशराफ जातियों के खिलाफ सामाजिक और राजनीतिक दबाव बढ़ सकता है। मुस्लिम समाज के भीतर भी प्रतिनिधित्व को लेकर नई बहस छिड़ सकती है, जिससे दलों पर पसमांदा वर्ग को अधिक राजनीतिक भागीदारी देने का दबाव बढ़ेगा।
Source -TV9Hindi