
बिहार वोटर वेरिफिकेशन विवाद
बिहार वोटर वेरिफिकेशन विवाद: वोटर वेरिफिकेशन के खिलाफ महागठबंधन का विरोध प्रदर्शन तेज, पटना समेत 5 शहरों में ट्रेनें और हाईवे जाम
Bihar Band Today:
बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले वोटर लिस्ट सत्यापन (वेरिफिकेशन) को लेकर विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध जताते हुए 9 जुलाई 2025 को बिहार बंद का आह्वान किया है। इस बंद का नेतृत्व महागठबंधन (INDIA Alliance) कर रहा है, जिसमें कांग्रेस, RJD, लेफ्ट और अन्य सहयोगी दल शामिल हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी पटना पहुंच चुके हैं और बंद में सक्रिय रूप से हिस्सा ले रहे हैं।
कहां-कहां दिखा बंद का असर?
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भोजपुर (बिहिया स्टेशन): पूर्व RJD विधायक भाई दिनेश ने समर्थकों के साथ श्रमजीवी एक्सप्रेस और विभूति एक्सप्रेस को रोका और नारेबाजी की। 3 मिनट बाद ट्रेन को रवाना किया गया।
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बेगूसराय: RJD कार्यकर्ताओं ने NH-31 को जाम कर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया।
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जहानाबाद: महागठबंधन कार्यकर्ताओं ने मेमू पैसेंजर ट्रेन को रोका। पुलिस ने कुछ समय बाद ट्रैक खाली कराया।
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दरभंगा: प्रदर्शनकारियों ने नमो भारत ट्रेन को रोका।
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पटना (मनेर): NH-30 को जाम किया गया, टायर जलाकर प्रदर्शन हुआ।
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आरा-सासाराम रोड: भाकपा माले के नेतृत्व में प्रमुख मार्ग अवरुद्ध किया गया, जिससे लंबा ट्रैफिक जाम लगा।
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सचिवालय हॉल्ट (पटना): पप्पू यादव ने समर्थकों संग ट्रेन रोककर विरोध प्रदर्शन किया।
राहुल गांधी की मौजूदगी से विरोध को नई धार

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी के पटना पहुंचने और बंद में शामिल होने से राजनीतिक तापमान और अधिक बढ़ गया है। विपक्ष इसे लोकतंत्र बचाओ आंदोलन बता रहा है।
सुप्रीम कोर्ट में 10 जुलाई को सुनवाई
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने 5 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर वोटर लिस्ट सत्यापन प्रक्रिया को रद्द करने की मांग की। अब इस पर 10 जुलाई को सुनवाई होगी।
चुनाव आयोग का पक्ष: वैध वोटर को नुकसान नहीं
चुनाव आयोग का कहना है कि यह सत्यापन संविधान के अनुच्छेद 326 और लोक प्रतिनिधित्व कानून के दायरे में किया जा रहा है। वैध मतदाताओं के नाम नहीं हटेंगे, बल्कि फर्जी और अवैध प्रवासी वोटर्स की पहचान कर लिस्ट से हटाया जाएगा।
सत्यापन प्रक्रिया की स्थिति
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शुरुआत: 27 जून 2025 से शुरू
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लक्ष्य: 7 करोड़ 89 लाख वोटरों का सत्यापन
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BLA तैनात: 1.5 लाख से अधिक बूथ लेवल एजेंट (BLA)
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BLO केंद्र: 98,498 मतदान केंद्रों पर सत्यापन
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कर्मचारी और स्वयंसेवक: कुल 2,25,590 में से 81,753 सरकारी कर्मचारी और 1,43,837 स्वयंसेवक कार्यरत
विपक्ष के 6 बड़े सवाल…
- 2003 से आज तक करीब 22 साल में बिहार में कम से कम 5 चुनाव हो चुके हैं, तो क्या वे सारे चुनाव गलत थे?
- अगर आपको SIR करना था तो इसकी घोषणा जून के अंत में क्यों की गई? इसका निर्णय कैसे और क्यों लिया गया? अगर मान भी लिया जाए कि SIR की जरूरत है तो इसे बिहार चुनाव के बाद आराम से किया जा सकता था। जब 2003 में यह प्रक्रिया अपनाई गई थी, तो उसके एक साल बाद लोकसभा चुनाव था और दो साल बाद विधानसभा का चुनाव था, इस बार केवल एक महीने का ही समय है।
- पिछले एक दशक से हर काम के लिए आधार कार्ड मांगा जा रहा है, लेकिन अब कहा जा रहा है कि आपको वोटर नहीं माना जाएगा- अगर आपके पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं होगा। एक कैटेगरी में उन लोगों के माता-पिता के जन्म का भी दस्तावेज होना चाहिए, जिनका जन्म समय 1987-2012 के बीच हुआ होगा। ऐसे में प्रदेश में लाखों-करोड़ गरीब लोग हैं, जिन्हें डॉक्यूमेंट जुटाने के लिए महीनों भागदौड़ करनी होगी। ऐसे में कई लोगों का नाम ही लिस्ट में शामिल नहीं होगा, जो साफ तौर पर लेवल प्लेइंग फील्ड का हनन है। लेवल प्लेइंग फील्ड चुनाव का आधार है और चुनाव, गणतंत्र का आधार है।
- चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया से कम से कम 2 करोड़ वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं। इसमें दलित, आदिवासी, प्रवासी मजदूर और गरीब तबके के लोग शामिल हैं। यदि किसी का नाम हटाया गया तो चुनाव घोषित होने के बाद उसे अदालत में चुनौती देना भी संभव नहीं होगा, क्योंकि उस दौरान कोर्ट चुनाव संबंधी मामलों की सुनवाई से परहेज करती हैं।
- आने वाले समय में उत्तर बिहार के लोग बाढ़ से प्रभावित होंगे। ऐसे में बाढ़ से घिरे लोग कैसे डॉक्यूमेंट की व्यवस्था करेंगे और प्रक्रिया में शामिल कैसे हो पाएंगे?
- बहुत सारे लोग बिहार से बाहर काम करते हैं। चुनाव आयोग की टीम जब उनके घर जाएगी तो लोग नहीं मिलेंगे। इस तरह करीब 20% वोटरों को लिस्ट से बाहर किया जा सकता है।
विपक्ष की आपत्ति: चुनावी प्रक्रिया से वंचित करने की साजिश?
कांग्रेस, RJD, लेफ्ट और INDIA गठबंधन का आरोप है कि यह एक प्रकार की गैर-सरकारी NRC प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य गरीब, दलित, आदिवासी, प्रवासी मजदूर और ग्रामीण समुदायों को वोटिंग प्रक्रिया से बाहर करना है। जाति प्रमाणपत्र, जन्म प्रमाणपत्र और माता-पिता की जानकारी की मांग से लाखों लोग प्रभावित हो सकते हैं। यह लोकतांत्रिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन बताया जा रहा है।
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