
NCERT: कक्षा 7 की किताब से मुग़ल और सल्तनत इतिहास हटाने पर विवाद
एनसीईआरटी की नई सातवीं कक्षा की किताब से मुग़ल और दिल्ली सल्तनत गायब, दक्षिण भारतीय राजवंशों को मिला अधिक स्थान
एनसीईआरटी (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) द्वारा सातवीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान की जो नवीन पाठ्यपुस्तक सत्र 2025-26 के लिए प्रकाशित की गई है, उसमें अब दिल्ली सल्तनत और मुग़ल शासनकाल का कोई उल्लेख नहीं है।
इससे पूर्व की किताब में मुग़लों और दिल्ली सल्तनत से संबंधित संक्षिप्त पाठ समाविष्ट थे, किंतु अब इन अध्यायों को पूर्ण रूप से हटा दिया गया है। नई किताबें राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCF) के अंतर्गत तैयार की गई हैं। हालांकि कुछ कक्षाओं की पुस्तकें अभी तक प्रकाशित नहीं हुई हैं, सातवीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान की इस नवीन पुस्तक में पांच मुख्य विषयों पर कुल 12 अध्याय सम्मिलित हैं।
नई थीम और अध्यायों की संरचना
पहली थीम ‘भारत और विश्व: भूमि और लोग’ के अंतर्गत तीन अध्याय हैं: भारत की भौगोलिक विविधता, भारत का मौसम, और जलवायु की समझ।
दूसरी थीम ‘अतीत की परतें’ ऐतिहासिक जानकारी प्रस्तुत करती है, जिसमें नए नगरों और राज्यों की शुरुआत, साम्राज्यों का उदय, पुनर्गठन का युग, और गुप्त काल को रचनात्मकता का युग बताया गया है।
इसके अतिरिक्त अन्य विषयों में ‘हमारी सांस्कृतिक विरासत और ज्ञान परंपराएं’, ‘शासन और लोकतंत्र’, और ‘आर्थिक जीवन की समझ’ शामिल हैं।
मुग़ल और सल्तनत गायब, दक्षिण भारत पर ज़ोर
नई किताब से जहां मुग़ल और सल्तनत काल को पूरी तरह हटाया गया है, वहीं दक्षिण भारत के शासकों को विशेष रूप से स्थान दिया गया है। इसमें मौर्य साम्राज्य की स्थापना, चंद्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक की उपलब्धियों के साथ उस काल की जीवनशैली का वर्णन भी किया गया है।
‘पुनर्गठन का युग’ नामक अध्याय में शुंग, सातवाहन, येदि, चेर, चोल, पांड्य और कुषाण वंशों का भी उल्लेख है। वहीं एक अध्याय विशेष रूप से गुप्त वंश को समर्पित है।
‘हमारी सांस्कृतिक धरोहर’ शीर्षक से प्रकाशित अध्याय में भूमि के पवित्र बनने की प्रक्रिया, धार्मिक स्थलों और तीर्थयात्राओं की सामाजिक भूमिका को बताया गया है। 2025 के कुंभ मेले में 66 करोड़ लोगों की उपस्थिति की जानकारी भी दी गई है।
पुरानी किताबों में क्या था?
पूर्व में सातवीं कक्षा की एनसीईआरटी की किताब में दिल्ली सल्तनत के शासकों जैसे खिलजी और तुगलक वंशों के प्रशासनिक तंत्र का विवरण था। मुग़ल प्रशासन, सैन्य अभियान और उनकी नीतियों पर भी पाठ थे, जो अब नहीं दिख रहे हैं।
फिलहाल सामाजिक विज्ञान की यह किताब केवल पहले भाग के रूप में जारी की गई है। एनसीईआरटी के अनुसार, आगे के कालखंडों पर आधारित सामग्री आने वाली है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि मुग़लों और सल्तनों से संबंधित पाठ होंगे या नहीं।
सरकारी प्रतिक्रिया और विशेषज्ञों की राय
शिक्षा मंत्री सुकांत मजूमदार ने NDTV से कहा कि मुग़ल काल को किताब से हटाया नहीं गया है, बल्कि पाठ्यक्रम से दोहराव को कम किया गया है। उन्होंने कहा कि मुग़ल काल भारतीय इतिहास का अहम हिस्सा है, लेकिन अन्य साम्राज्यों को भी समान महत्व मिलना चाहिए।
उन्होंने कहा, “मुग़ल काल को पढ़ाया जाना चाहिए, लेकिन अनावश्यक दोहराव से बचना चाहिए। एक संतुलित दृष्टिकोण के तहत सभी वंशों को समान महत्व दिया जाना चाहिए।”
दक्षिण भारत की उपेक्षा का मुद्दा
फिल्म अभिनेता आर माधवन ने एक साक्षात्कार में कहा कि इतिहास की पुस्तकों में दक्षिण भारतीय साम्राज्यों को नज़रअंदाज़ किया गया है। उन्होंने कहा कि चोल, पल्लव, पांड्य और चेर जैसे प्राचीन दक्षिण भारतीय राजवंशों पर ध्यान नहीं दिया गया जबकि मुग़लों पर आठ अध्याय और अंग्रेज़ों पर चार पाठ थे।
उन्होंने यह भी कहा कि चोल वंश ने 2400 वर्षों तक समुद्री व्यापार और मंदिर निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन उसे पाठ्यपुस्तकों में समुचित स्थान नहीं मिला।
पहले भी हुए बदलाव
2023 में भी एनसीईआरटी ने बारहवीं कक्षा की ‘Themes of Indian History’ पुस्तक से मुग़लों पर आधारित पाठों को हटा दिया था, जिसका कारण छात्रों के बोझ को कम करना बताया गया था।
2000 के दशक में एनडीए सरकार के समय भी पाठ्यक्रम में बदलाव हुआ था। तब मुग़ल काल की सामग्री को सीमित कर दिया गया और हिंदू शासकों को अधिक जगह दी गई थी।
आलोचना और समर्थन दोनों
इतिहासकार मृदुला मुखर्जी ने कहा कि यदि मुग़लों और सुल्तानों को स्थायी रूप से हटाया गया है तो यह ग़लत है। उन्होंने कहा कि इतिहास के किसी भी कालखंड को यूं ही समाप्त नहीं किया जा सकता।
एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक जेएस राजपूत ने इस आलोचना को निराधार बताते हुए कहा कि किताबें तीन हिस्सों में आएंगी और अंतिम निर्णय सभी भागों के प्रकाशित होने के बाद किया जाना चाहिए।
राजपूत ने कहा कि पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत को अब वह स्थान मिल रहा है जो पहले नहीं दिया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि एनसीईआरटी एक राष्ट्रीय संस्था है जो राष्ट्रहित में कार्य कर रही है।
विवाद और राजनैतिक बहस
सरकार पर पहले भी पाठ्य पुस्तकों के भगवाकरण का आरोप लगाया गया है। हाल में केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि औरंगज़ेब जैसे शासकों का महिमामंडन हुआ है जो कि इतिहास का विकृत चित्रण है।
हाल की फिल्म ‘छावा’ में छत्रपति शंभाजी महाराज के चित्रण के बाद औरंगज़ेब की मज़ार को हटाने की मांग भी सामने आई थी।
निष्कर्ष
एनसीईआरटी की नई किताबें देश की शिक्षा नीतियों में बदलाव का हिस्सा हैं। हालांकि मुग़ल और सल्तनत काल के हटाए जाने पर बहस ज़रूर तेज़ हो गई है, लेकिन यह अभी स्पष्ट नहीं है कि अंतिम रूप में इतिहास के किस हिस्से को कितनी जगह मिलेगी।
Disclaimer:
यह लेख केवल सूचना देने के उद्देश्य से तैयार किया गया है। किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले पाठ्य सामग्री की पूर्ण समीक्षा आवश्यक है। इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और किसी संस्था की आधिकारिक राय को प्रतिबिंबित नहीं करते।