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Chhattisgarh Madrasa Board And Urdu Academy -22 साल में वेबसाइट भी नहीं बना सकी उर्दू अकादमी: कार्यक्रमों का अभाव, भवन नहीं, बजट वेतन में खत्म; अब सरकार कर रही बंद करने पर विचार
रायपुर | 6 जुलाई 2025 — छत्तीसगढ़ सरकार राज्य उर्दू अकादमी और मदरसा बोर्ड को बंद करने पर गंभीरता से विचार कर रही है। 2003 में गठित उर्दू अकादमी 22 वर्षों में भी एक वेबसाइट नहीं बना पाई, न ही कोई ठोस उर्दू संवर्धन कार्यक्रम चला पाई।
किराए के भवन में चल रही अकादमी, सालाना बजट वेतन में खर्च
उर्दू अकादमी का न तो अपना भवन है, न संसाधन। यह रायपुर आरडीए के एक किराए के भवन में 22 हजार रु. मासिक किराए पर संचालित हो रही है। अकादमी को हर साल औसतन 80 लाख रुपये का बजट मिलता है, जो पूरी तरह वेतन और भत्तों में खर्च हो जाता है। उर्दू को बढ़ावा देने के लिए एक भी सार्वजनिक या साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन नहीं होता।
दशकों पुरानी किताबें बंद अलमारी में, कोई अपडेट नहीं
अकादमी की लाइब्रेरी दशकों पुरानी किताबों तक सीमित है, जिन्हें कभी अपडेट नहीं किया गया। ये किताबें अब अलमारी में बंद पड़ी हैं, जिनका उपयोग शून्य है। डिजिटल सुविधाओं की भी कोई व्यवस्था नहीं है।
मदरसा बोर्ड की हालत भी दयनीय, केवल परीक्षा संचालन तक सीमित
छत्तीसगढ़ मदरसा बोर्ड, जो पहले राज्य के लगभग 400 मदरसों को संचालित करता था, अब घटकर केवल 150 के करीब मदरसों तक सिमट गया है।
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2005 में 400+ मदरसे थे
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2021-22 में केंद्र ने अनुदान बंद किया
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राज्य सरकार से भी मदद नहीं मिली
बोर्ड अब पुलिस मुख्यालय की एक बिल्डिंग में तीन कमरों से संचालित हो रहा है, जिसमें फाइलों के ढेर के बीच कुछ कर्मचारी बैठे रहते हैं। बोर्ड का काम अब सिर्फ 5वीं, 8वीं, 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं कराना रह गया है, जिसकी मार्कशीट केवल छत्तीसगढ़ में मान्य है और इसमें 200 छात्र भी शामिल नहीं होते।
बजट और नियुक्तियों की स्थिति
इकाई | वार्षिक बजट | मुख्य खर्च |
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उर्दू अकादमी | ₹80 लाख | 100% वेतन |
मदरसा बोर्ड | ₹1 करोड़ | 90% वेतन, बचत शून्य |
कोर्ट के स्टे पर चल रहे अध्यक्ष
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मदरसा बोर्ड अध्यक्ष अलताफ अहमद और उर्दू अकादमी अध्यक्ष इदरीश गांधी वर्तमान में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट से स्टे लेकर पद पर बने हुए हैं।
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पिछले 7 साल से बोर्ड में कोई नई नियुक्ति नहीं हुई है।
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इदरीश गांधी का कार्यकाल अक्टूबर 2025 में समाप्त हो रहा है और पिछले 6 माह से उन्हें वेतन नहीं मिला है क्योंकि सरकार ने फंड रिलीज नहीं किया।
अफसरों की बैठक सालभर में एक बार भी नहीं
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न मंत्रालय समीक्षा करता है, न अधिकारी बैठक बुलाते हैं।
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एक ही अफसर को दोनों संस्थानों का प्रभार सौंपा गया है:
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मदरसा बोर्ड – चंद्र प्रकाश द्विवेदी
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उर्दू अकादमी – असलम खान
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दोनों ही प्रतिनियुक्ति पर हैं और तर्क देते हैं कि अपर्याप्त बजट के कारण अतिरिक्त काम नहीं किया जा सकता।
जिम्मेदारों की प्रतिक्रियाएं
अलताफ अहमद, अध्यक्ष, मदरसा बोर्ड:
“हमें हर साल ₹5-6 करोड़ की ज़रूरत होती है, लेकिन आधे से भी कम फंड मिलता है। पिछले कुछ वर्षों से वो भी नहीं मिला। हम कैसे काम करें?”
इदरीश गांधी, अध्यक्ष, उर्दू अकादमी:
“हमने समय-समय पर उर्दू को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए हैं। फंड की कमी एक बड़ा मुद्दा है। वेबसाइट नहीं बन सकी, यह स्वीकार्य है, लेकिन प्रयास किए जा रहे हैं।”
निष्कर्ष: नाम की संस्था, काम नदारद
छत्तीसगढ़ में उर्दू और मदरसा शिक्षा को लेकर संस्थागत रूप से लापरवाही का नतीजा यह है कि अब सरकार इनके विलय या बंद करने की दिशा में कदम बढ़ा रही है।
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उर्दू अकादमी जड़वत स्थिति में है
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मदरसा बोर्ड केवल खानापूर्ति कर रहा है
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और दोनों के अध्यक्ष कोर्ट के आदेशों पर टिके हुए हैं।
राज्य में अल्पसंख्यक शिक्षा की हालत इस कदर बिगड़ी है कि कोई दिशा और लक्ष्य ही नहीं दिखता। अब देखने वाली बात यह है कि क्या सरकार इन संस्थानों को सुधारेगी या समाप्त करेगी।
Source- Dainik Bhaskar
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