
Raj Thackeray Uddhav Thackeray Alliance
Raj Thackeray Uddhav Thackeray Alliance: मजबूरी या BJP की रणनीति? 5 जुलाई की विजय रैली से बदलेगा महाराष्ट्र
स्थान: वर्ली डोम, मुंबई
तारीख: 5 जुलाई 2025
5 जुलाई को मुंबई की राजनीति में एक बड़ा मोड़ आने जा रहा है। दशकों की सियासी दूरियों को पीछे छोड़ते हुए उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक ही मंच पर नजर आएंगे। इस ‘मराठी विजय दिवस’ रैली को लेकर पूरे महाराष्ट्र में चर्चाओं का बाजार गर्म है।
क्या है मराठी विजय दिवस रैली का असली मकसद?
इस रैली का आयोजन ‘आवाज मराठी का’ नामक अभियान के तहत हो रहा है। न तो इसमें किसी पार्टी का नाम है, न झंडा और न ही चुनावी प्रतीक। न्योते में सीधे मराठी जनता से अपील की गई है—
“क्या आपने सरकार को झुकाया? हां, आपने। हम तो बस आपकी तरफ से लड़ रहे थे।”
हालांकि, रैली की अनुमति पर अभी भी सवाल खड़े हैं, लेकिन इसकी सियासी गूंज पहले ही सुनाई देने लगी है।
राज-उद्धव का मेल: मजबूरी या BJP का मास्टरस्ट्रोक?
राजनीतिक विश्लेषक इसे सिर्फ मराठी अस्मिता का इवेंट नहीं, बल्कि एक रणनीतिक गठबंधन मान रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, राज ठाकरे की देवेंद्र फडणवीस से हुई मीटिंग के बाद ही उनके राजनीतिक तेवर बदले हैं।
क्या बीजेपी चाहती है कि एकनाथ शिंदे की शिवसेना को BMC में पैर जमाने से रोका जाए? यही सवाल अब चर्चा का विषय बन चुका है।
शिवसेना और MNS का सियासी इतिहास और टूटता ग्राफ
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2005 में राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़कर MNS बनाई
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2009 में MNS ने 13 सीटें जीतीं
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2014 में गिरकर 1 सीट पर आ गए
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2024 में शून्य—ना विधायक, ना सांसद
उधर उद्धव ठाकरे के भी हालात बेहतर नहीं हैं।
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2022 की बगावत ने पार्टी को दो फाड़ कर दिया
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चुनाव चिन्ह और पार्टी नाम भी छिन गया
अब दोनों भाइयों के लिए सियासी अस्तित्व बचाना चुनौती बन गया है।
क्या BMC चुनाव असली निशाना है?
राजनीतिक एक्सपर्ट मानते हैं कि उद्धव और राज का साथ आना सिर्फ मराठी भावनाओं की बात नहीं है, बल्कि असली मकसद है BMC चुनाव में एकनाथ शिंदे को मात देना।
बीजेपी का छुपा रोल भी सामने आ रहा है—
“फडणवीस चाहते हैं कि मुंबई में शिंदे की पकड़ न बन पाए, इसलिए उन्होंने राज ठाकरे को मराठी भाषा का मुद्दा उठाने की सलाह दी।”
राजनीतिक कार्यकर्ताओं और जनता का रिएक्शन
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MNS शाखा प्रमुख नीलेश इंदप ने कहा, “ये रैली दिवाली की तरह होगी। मराठी जनता पूरे जोश में है।”
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शिवसेना पार्षद अनिल कोकिल ने कहा, “ये गठबंधन BMC चुनाव से कहीं बड़ा है—यह मराठी मानुष की सुरक्षा और आत्म-सम्मान का प्रतीक है।”
क्या दोनों पार्टी कार्यकर्ता साथ काम कर पाएंगे?
राज ठाकरे की राजनीति कभी हिंदुत्व, कभी मराठी अस्मिता, तो कभी उत्तर भारतीय विरोध के इर्द-गिर्द घूमती रही है।
उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस-NCP के साथ सरकार भी चलाई लेकिन हिंदुत्व की विचारधारा नहीं छोड़ी।
जर्नलिस्ट जितेंद्र दीक्षित का कहना है,
“राज और उद्धव की विचारधाराएं वक्त के साथ बदलती रही हैं। दोनों अब अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं—तो पुरानी दूरियां भुलाकर एक साथ आने की संभावना प्रबल है।”
क्या यह गठबंधन लंबे समय तक चलेगा?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ये गठबंधन कम से कम BMC चुनाव तक तो ज़रूर चलेगा। अगर परिणाम अच्छे मिले तो यह 2029 के विधानसभा चुनाव तक भी जारी रह सकता है।
“दोनों को अपने बेटों—आदित्य ठाकरे और अमित ठाकरे को स्थापित करना है। मराठी अस्मिता एक साझा मंच दे सकती है।”
Source –Dainik Bhaskar
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