
Bodhghat Hydropower Project Protest : 56 गांवों ने दी उग्र आंदोलन की चेतावनी, कहा- जान देंगे पर जमीन नहीं
दंतेवाड़ा | 23 जून 2025
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में प्रस्तावित बोधघाट जल विद्युत परियोजना को लेकर विरोध फिर से भड़क उठा है। 56 गांवों के ग्रामीणों ने इस परियोजना के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए जान देने तक की चेतावनी दी है। ग्रामीणों का आरोप है कि परियोजना के नाम पर उनकी भावनाओं की लगातार अनदेखी की जा रही है।
हितालकुडूम गांव में “बोधघाट संघर्ष समिति” के बैनर तले सैकड़ों ग्रामीणों ने एक बड़ी बैठक आयोजित की, जिसमें उग्र आंदोलन की रणनीति बनाई गई। ग्रामीणों का कहना है कि जब तक सरकार विस्थापन नीति स्पष्ट नहीं करती और ग्रामीणों का विश्वास नहीं जीतती, तब तक वे परियोजना को शुरू नहीं होने देंगे।
क्या है बोधघाट परियोजना?
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बोधघाट परियोजना एक बहुउद्देशीय योजना है जो छत्तीसगढ़ की इंद्रावती नदी पर आधारित है।
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परियोजना का उद्देश्य है:
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500 मेगावॉट बिजली उत्पादन,
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3.7 लाख हेक्टेयर सिंचाई सुविधा,
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4,824 टन वार्षिक मत्स्य उत्पादन,
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और 7 लाख हेक्टेयर सिंचाई विस्तार।
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इस पर अनुमानित खर्च ₹29,000 करोड़ बताया जा रहा है।
क्यों है ग्रामीणों का विरोध?
ग्रामीणों का कहना है कि:
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56 गांव पूरी तरह प्रभावित होंगे।
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13,783 हेक्टेयर भूमि डूबान क्षेत्र में आएगी, जिसमें
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5,407 हेक्टेयर वन भूमि,
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5,010 हेक्टेयर निजी भूमि,
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और 3,068 हेक्टेयर राजस्व भूमि शामिल है।
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50 लाख से ज्यादा पेड़ों के नष्ट होने की संभावना है।
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अब तक विस्थापन नीति स्पष्ट नहीं की गई है।
ग्रामीणों ने स्पष्ट कहा:
“जान दे देंगे लेकिन जमीन नहीं देंगे।”
इंद्रावती नदी से 500 मेगावॉट बिजली उत्पादन संभव
इंद्रावती नदी बस्तर की प्रमुख नदी है, जो ओडिशा से बहती हुई छत्तीसगढ़ में प्रवेश करती है।
हर साल लगभग 290 TMC पानी व्यर्थ गोदावरी में बह जाता है।
वर्तमान में नदी पर कुछ ही छोटे एनीकट हैं।
प्रस्तावित बांध से इस पानी का उपयोग कर बिजली और सिंचाई का लाभ उठाया जा सकता है।
बोधघाट परियोजना का इतिहास
वर्ष | घटनाक्रम |
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1950 | परियोजना की पहली कल्पना की गई |
1979 | प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने शिलान्यास किया |
1985 | विश्व बैंक ने ₹360 करोड़ की आर्थिक सहायता मंजूर की |
1986-88 | पर्यावरण आपत्तियों व वन भूमि विवाद के कारण वित्तीय सहायता रुकी |
2004 | काम पुनः शुरू किया गया लेकिन नक्सली गतिविधियों के चलते रुका |
2014 | बेंगलुरु की कंपनी ने प्रयास किया, लेकिन स्थानीय विरोध के चलते छोड़ दिया |
ग्रामीणों की मांगें और चेतावनी

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सरकार स्पष्ट विस्थापन नीति बनाए
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ग्रामवासियों की सहमति से ही कोई कार्यवाही हो
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परियोजना का कार्य बंद रखा जाए जब तक समझौता नहीं होता
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जनभावनाओं को नजरअंदाज करने पर उग्र आंदोलन की चेतावनी
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