
Uttarakhand Madrasa Controversy –
“हमारे पास शिक्षा बोर्ड और मदरसा बोर्ड की मान्यता थी, जमीन के कागजात भी संपूर्ण थे, फिर भी प्रशासन ने बिना हमारी बात सुने मदरसे को सील कर दिया। यहां 70 से 80 बच्चे पढ़ते थे, जिनकी पढ़ाई अब पूरी तरह ठप हो गई है।”
ये शब्द उत्तराखंड के देहरादून स्थित दारुल उलूम मुहम्मदिया मदरसे के प्रबंधक मोहम्मद मोहतशिम के हैं। वे अब भी यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर इस तरह की सख्त कार्रवाई क्यों की गई, जब उनके पास सभी आवश्यक दस्तावेज मौजूद थे।
मोहतशिम अकेले नहीं हैं। उत्तराखंड में फरवरी-मार्च 2025 से अब तक 170 से अधिक मदरसों को “अवैध” बताकर सील किया जा चुका है। सरकार का दावा है कि ये मदरसे बिना किसी मान्यता या रजिस्ट्रेशन के चल रहे थे, जबकि मुस्लिम संगठनों का कहना है कि यह कार्रवाई एक समुदाय विशेष को निशाना बनाकर की गई है।
सीएम के आदेश के बाद तेज हुई कार्रवाई
दिसंबर 2024 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश भर के मदरसों का वेरिफिकेशन करने का आदेश दिया था। इसमें रजिस्ट्रेशन की स्थिति, फंडिंग सोर्स और छात्रों की संख्या की जांच की गई।
27 फरवरी को उत्तराखंड मदरसा बोर्ड की मान्यता समिति की बैठक के बाद एक दिन में ही कई मदरसों पर कार्रवाई शुरू कर दी गई। प्रशासन का कहना है कि सील किए गए मदरसों के पास बोर्ड की मान्यता नहीं थी।
मदरसा प्रबंधन की आपत्तियां
देहरादून के मदरसा दारुल उलूम मुहम्मदिया, जो 2013 से चल रहा था, को 28 फरवरी 2025 को सील कर दिया गया। उस दिन बच्चों की कक्षाएं चल रही थीं जब DM, SDM और भारी पुलिस बल मदरसे में दाखिल हुआ।
मोहम्मद मोहतशिम बताते हैं कि उनके पास मदरसा बोर्ड और शिक्षा बोर्ड की मान्यता थी। उन्होंने फरवरी 2024 में रिन्युअल के लिए आवेदन भी दिया था, जिसकी रिसीविंग मौजूद है। फिर भी बिना किसी नोटिस के कार्रवाई की गई।
उनका कहना है, “DM ने मदरसा बोर्ड जाने को कहा, मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष से मिलने पर उन्होंने बात तक नहीं की। हमें SDM के पास भेज दिया गया।”
एक छात्र हसन के पिता अकील, जो मजदूरी करते हैं, कहते हैं, “मदरसे में मुफ्त तालीम मिलती थी, अब प्राइवेट स्कूल का खर्च उठा पाना मुमकिन नहीं है।”
बिना नोटिस, बिना सर्वे – सीधे सीलिंग
हल्द्वानी का इहया उल उलूम मदरसा भी इस कार्रवाई की चपेट में आया। कोषाध्यक्ष मोहम्मद शोएब ने बताया कि उनके पास सोसाइटी एक्ट और वक्फ बोर्ड के सभी दस्तावेज थे, लेकिन अधिकारियों ने सीधे आकर मदरसा सील कर दिया।
उनका कहना है कि प्रशासन ने यह जांच तक नहीं की कि मकतब और मदरसा में फर्क क्या है। “हमारे यहां एक छोटा मकतब था, मगर प्रशासन ने उसे मदरसा समझकर सील कर दिया।”
मकतब को भी बना दिया निशाना
हल्द्वानी में कम से कम तीन ऐसे संस्थान सील किए गए जो असल में मकतब थे, यानी वे स्थान जहां सिर्फ धार्मिक तालीम दी जाती है।
मकतब खातिजातुल कुबरा ने जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी को पत्र लिखकर स्पष्ट किया कि उनका कोई रजिस्ट्रेशन मदरसे के रूप में नहीं है, और वे केवल धार्मिक शिक्षा देते हैं, जो कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 30 के अंतर्गत पूरी तरह वैध है।
प्रशासनिक अज्ञानता या जानबूझी गई सख्ती?
जमीअत उलेमा-ए-हिंद के नैनीताल जिलाध्यक्ष मोहम्मद मुकीम, जो हल्द्वानी में दो मकतब चला रहे थे, बताते हैं कि उनके संस्थानों को भी बिना किसी पूर्व सूचना या नोटिस के सील कर दिया गया।
वे कहते हैं, “हम सिर्फ एक या दो घंटे की धार्मिक शिक्षा देते हैं। बच्चे नियमित स्कूल जाते हैं। मकतब का मकसद बच्चों को कुरान, उर्दू, नमाज और वजू का तरीका सिखाना होता है। इसे जबरदस्ती बंद करना संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है।”
मदरसा बोर्ड की खामोशी
उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड की स्थापना 2013 में हुई थी। बोर्ड के सदस्य फसहाद मुईन, जिनका मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त है, भी मानते हैं कि बोर्ड ने बाकी मदरसों और मकतबों को रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया की जानकारी नहीं दी।
वे कहते हैं, “वक्फ बोर्ड सिर्फ जमीन या संपत्ति का प्रबंधन करता है, शिक्षा का नहीं। मगर प्रशासन ने बिना स्पष्टता के कई धार्मिक शिक्षण संस्थान सील कर दिए।”
RTI से भी नहीं मिला कोई स्पष्ट रिकॉर्ड
वकील नदीमुद्दीन द्वारा दाखिल RTI से खुलासा हुआ कि मदरसा बोर्ड के पास कोई सीलिंग रेकॉर्ड या डिटेल नहीं है।
हालांकि मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शमून कासमी इस बात से इत्तफाक नहीं रखते। उन्होंने कहा कि कार्रवाई सिर्फ अवैध संस्थानों पर हुई है, किसी समुदाय को टारगेट नहीं किया गया।
निष्कर्ष
उत्तराखंड में मदरसों की सीलिंग को लेकर कानूनी प्रक्रियाओं की पारदर्शिता, समुदाय विशेष के प्रति निष्पक्षता, और शैक्षिक अधिकारों पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। जबकि सरकार इसे अवैध संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई बता रही है, मुस्लिम समुदाय और सामाजिक संगठनों को यह सांप्रदायिक पक्षपात प्रतीत हो रहा है।
इस पूरे घटनाक्रम ने धार्मिक स्वतंत्रता, शैक्षिक अधिकार, और प्रशासनिक पारदर्शिता पर नई बहस को जन्म दिया है।
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