
Sikkim Merger with India: सिक्किम की रानी को चाहिए था दार्जिलिंग, इंदिरा गांधी ने RAW से पूछा – क्या कर सकते हैं? भारत ने 1975 में सिक्किम को बनाया 22वां राज्य
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब सिक्किम की गोल्डन जुबली मनाने गंगटोक पहुंचे, तब कई लोगों के मन में यह सवाल उठने लगा कि आखिर सिक्किम भारत का हिस्सा कैसे बना? आज से ठीक 50 साल पहले, यानी 1975 में, सिक्किम को भारत का 22वां राज्य घोषित किया गया था। लेकिन यह प्रक्रिया न केवल राजनीतिक बल्कि रणनीतिक और खुफिया तौर पर भी बेहद दिलचस्प रही।
1642: चोग्याल वंश की स्थापना और बौद्ध राज्य की शुरुआत
सिक्किम की ऐतिहासिक यात्रा 1642 में शुरू होती है जब यहां चोग्याल वंश की स्थापना हुई। यह बौद्ध वंश था और इसका शासन भूटिया और लेपचा समुदायों पर आधारित था। उस समय सिक्किम एक शांत, अलग-थलग और स्वतंत्र राज्य था, जो तिब्बत और नेपाल के बीच स्थित था।
ब्रिटिश युग में आया भू-राजनीतिक महत्व
18वीं और 19वीं शताब्दी में सिक्किम ने अंग्रेजों से दोस्ती की, ताकि वह गोरखा (नेपाल) आक्रमणों से अपनी रक्षा कर सके। 1817 की तितालिया संधि के तहत अंग्रेजों ने सिक्किम की सुरक्षा का वादा किया और दार्जिलिंग जैसे क्षेत्र उसे लौटाए।
लेकिन 1835 में ब्रिटिश राज ने सिक्किम के राजा से दार्जिलिंग ‘तोहफे’ के तौर पर ले लिया और वहां की जलवायु और रणनीतिक स्थिति का फायदा उठाकर सैन्य केंद्र और व्यापार मार्ग बना दिया।
1889: नेपाली आबादी की बाढ़ और जनसांख्यिकी बदलाव
ब्रिटिश अफसर जॉन क्लॉड व्हाइट ने नेपालियों को सिक्किम में बसने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके बाद, 1941 तक नेपाली आबादी 75% तक पहुंच गई और पारंपरिक भूटिया-लेपचा समुदाय अल्पसंख्यक बन गए। इस जनसांख्यिकी बदलाव ने आगे चलकर सिक्किम के राजनीतिक भविष्य को गहराई से प्रभावित किया।
1947 के बाद भी सिक्किम रहा आज़ाद
भारत की आज़ादी के बाद जब कई रियासतें भारत में विलीन हो रही थीं, तब सिक्किम के राजा (चोग्याल ताशी नामग्याल) ने भारत में विलय से इनकार कर दिया। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने सिक्किम को एक विशेष दर्जा दिया, जिसके तहत भारत उसकी रक्षा और विदेश नीति संभालेगा लेकिन आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
चोग्याल और रानी होप कुक की अलग राह
सिक्किम के अंतिम राजा पाल्डेन थोंडुप नामग्याल ने 1963 में अमेरिकी महिला होप कुक से विवाह किया। होप कुक ने अमेरिका में पढ़ाई की थी और कई बार वह कह चुकी थीं कि दार्जिलिंग सिक्किम का हिस्सा होना चाहिए।
यह बयान भारत सरकार को खटकने लगा। अमेरिका और CIA से उनके संबंधों की अटकलें लगाई जाने लगीं। इस बीच चोग्याल भारत से सिक्किम की स्वतंत्र पहचान बनाए रखने की कोशिश कर रहे थे।
जन असंतोष और राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत
1970 के दशक की शुरुआत में नेपाली मूल की आबादी में चोग्याल के खिलाफ असंतोष बढ़ने लगा। लोग उन्हें तानाशाही शासक कहने लगे। 1973 में चुनाव के दौरान गड़बड़ी हुई और लोगों ने चोग्याल के खिलाफ सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया।
RAW की एंट्री: ऑपरेशन ट्विलाइट और ऑपरेशन जनमत
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हालात की गंभीरता को देखते हुए RAW प्रमुख आर.एन. काओ से पूछा – “क्या आप कुछ कर सकते हैं?” इसके बाद RAW ने दो ऑपरेशन शुरू किए:
ऑपरेशन ट्विलाइट:
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विरोध को हवा दी गई
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जनता को चोग्याल के खिलाफ उकसाया गया
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काजी लेंडुप दोरजी और के.सी. प्रधान जैसे नेताओं को समर्थन दिया गया
ऑपरेशन जनमत:
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4 अप्रैल 1973 को चोग्याल के जन्मदिन पर बड़े प्रदर्शन आयोजित किए गए
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सिक्किम के लोकल मीडिया को भारत समर्थक खबरें देने के लिए तैयार किया गया
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भारतीय सेना की मौजूदगी बढ़ा दी गई जिससे चोग्याल दबाव में आ गए
8 अप्रैल 1973: प्रशासन भारत के हाथ
भारत सरकार ने चोग्याल को एक समझौता पत्र भेजा जिसमें सिक्किम का प्रशासन भारत सरकार को सौंपने की बात थी। चोग्याल को इसे स्वीकार करना पड़ा। इसके साथ ही सिक्किम की पुलिस पर भी भारतीय नियंत्रण स्थापित हो गया।
1974: चुनाव और संविधान
इसके बाद सिक्किम में चुनाव हुए, जिसमें भारत समर्थक दलों को बहुमत मिला। नई विधानसभा ने भारत के संविधान को मान्यता दे दी और भारतीय संघ में विलय का प्रस्ताव पारित किया।
1975: संसद का फैसला और सिक्किम बना भारत का हिस्सा
मार्च 1975 में सिक्किम की विधानसभा ने भारत में पूर्ण विलय का प्रस्ताव पास किया। फिर भारतीय संसद में 36वां संविधान संशोधन पारित कर 16 मई 1975 को सिक्किम को भारत का 22वां राज्य बना दिया गया।
इसके साथ ही:
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चोग्याल को हटाकर उनका राज समाप्त कर दिया गया
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सिक्किम को केंद्र की तरफ से विकास योजनाओं का हिस्सा बनाया गया
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चोग्याल और उनके परिवार को सुविधाएं दी गईं लेकिन सत्ता से पूरी तरह बाहर कर दिया गया
निष्कर्ष: जनता, रणनीति और नेतृत्व ने निभाई बड़ी भूमिका
सिक्किम का भारत में विलय केवल एक राजनीतिक फैसला नहीं था। यह एक रणनीतिक, खुफिया और कूटनीतिक सफलता थी। जनता का विरोध, RAW की सूझबूझ, और इंदिरा गांधी का नेतृत्व इस विलय की नींव बने।
आज सिक्किम भारत का अभिन्न हिस्सा है और विकास के पथ पर अग्रसर है, लेकिन इसके पीछे छिपी कहानी इतिहास के पन्नों में दर्ज एक बेहद खास अध्याय है।