
Jawaharlal Nehru के आखिरी दिन: आत्मविश्वास में गिरावट और अंतिम क्षणों की कहानी
27 मई 1964 को भारतीय संसद का विशेष सत्र बुलाया गया था, जिसमें प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू कश्मीर मुद्दे पर कुछ सवालों के उत्तर देने वाले थे। लेकिन जब वे दोपहर तक सदन में नहीं पहुंचे, तो चिंता फैल गई। थोड़ी देर बाद केंद्रीय मंत्री चिदंबरम सुब्रमण्यम सदन में आए और कहा, “रोशनी चली गई।” उसी दिन दोपहर 1:44 बजे, देश के पहले प्रधानमंत्री ने अंतिम सांस ली।
यह घटना भारतीय इतिहास का एक भावनात्मक क्षण था, जब देश एक महान नेता को खो रहा था। आज नेहरू के निधन को 61 वर्ष हो चुके हैं।
नेहरू की मानसिक स्थिति पर चीन युद्ध का प्रभाव
1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान भारत ने सैन्य, रणनीतिक और संसाधनों के मामले में गंभीर नुकसान उठाया। अक्साई चिन पर चीन का कब्जा बना रहा। इस पराजय के बाद नेहरू की छवि और आत्मबल दोनों प्रभावित हुए। रामचंद्र गुहा ने अपनी पुस्तक India After Gandhi में लिखा कि नेहरू की काया थकी हुई प्रतीत होने लगी थी।
कश्मीर यात्रा और पारिवारिक पल
18 जून 1963 को नेहरू कश्मीर गए, जहाँ इंदिरा गांधी और उनके दोनों पोते राजीव व संजय उनके साथ थे। वे पहलगाम और आसपास की वादियों में समय बिताने गए और कुछ दिनों तक वहां विश्राम किया।
नेहरू के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव
19 अगस्त 1963 को जे.बी. कृपलानी द्वारा संसद में पहला अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। चार दिन चले इस बहस में नेहरू ने स्वयं भाग लिया और अंततः 62 के मुकाबले 347 मतों से सरकार ने विश्वास बनाए रखा। हालांकि, यह साफ था कि राजनीतिक दबाव और शारीरिक थकावट ने उन पर गहरा असर डाला।
स्ट्रोक और गिरती सेहत
जनवरी 1964 में कांग्रेस की बैठक के दौरान नेहरू को स्ट्रोक आया, जिससे उनके शरीर का एक भाग प्रभावित हुआ। मीडिया में उनके स्वास्थ्य की तस्वीरें सामने आने लगीं। धीरे-धीरे वे सार्वजनिक कार्यक्रमों में कम नजर आने लगे।
कश्मीर मुद्दे पर अंतिम कोशिश
अप्रैल 1964 में नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को 11 वर्षों की जेल के बाद रिहा किया। दोनों के बीच कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए वार्ता हुई। लेकिन इस योजना को लागू करने से पहले ही नेहरू का निधन हो गया।
नेहरू की मौत और पाकिस्तान का शोक
27 मई को जब नेहरू का निधन हुआ, तो पाकिस्तान ने भी एक दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया और अपना झंडा आधा झुका दिया। यह नेहरू के प्रति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान का प्रतीक था।
निधन से कुछ दिन पहले की स्थिति
एम.ओ. मथाई की पुस्तक Reminiscences of the Nehru Age के अनुसार, नेहरू अब कोई भी महत्वपूर्ण काम करने की स्थिति में नहीं थे। 22 मई की प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने खुद कहा, “मैं अभी नहीं मरूंगा”, लेकिन पाँच दिन बाद ही उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।