
India’s first nuclear test-18 मई 1974: जब भारत ने पोखरण में इतिहास रचा – ‘स्माइलिंग बुद्धा’ की रहस्यमयी कहानी
आज से ठीक 51 वर्ष पहले, 18 मई 1974 की सुबह, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निवास पर असामान्य हलचल थी। वह लोगों से मिल रही थीं, लेकिन भीतर से चिंतित थीं। तभी करीब 8:30 बजे उनके सचिव पीएन धर पहुंचे। इंदिरा तुरंत तेज़ी से उनकी ओर बढ़ीं और पूछा, “क्या हुआ?” धर ने जवाब दिया, “बुद्ध मुस्कुरा रहे हैं।” यह सुनते ही इंदिरा ने गहरी सांस ली और उनके चेहरे पर संतोष झलक उठा।
यह वह ऐतिहासिक क्षण था जब भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण सफलतापूर्वक कर दिखाया था। इस लेख में जानिए इस ऐतिहासिक परीक्षण की पर्दे के पीछे की कहानी…
होमी भाभा से शुरू हुई परमाणु यात्रा
1962 में चीन के साथ युद्ध में भारत की पराजय के बाद वैज्ञानिक होमी भाभा ने देश को परमाणु शक्ति संपन्न बनाने की दिशा में कदम बढ़ाए। लेकिन 24 जनवरी 1966 को एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। इससे देश के न्यूक्लियर ड्रीम को गहरा झटका लगा।
भाभा के निधन के बाद विक्रम साराभाई को एटॉमिक एनर्जी कमीशन (AEC) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उस समय भारत आर्थिक संकट से जूझ रहा था, जिससे परमाणु परीक्षण की योजना ठंडे बस्ते में चली गई। बाद में साराभाई के निधन के बाद, उनके शिष्य होमी सेठना को यह जिम्मेदारी दी गई।
1971 की जंग और इंदिरा का फैसला
1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान जब अमेरिका ने अपना सातवां बेड़ा भेजा और परमाणु हमले की आशंका जताई, तब इंदिरा गांधी ने समझ लिया कि भारत को परमाणु शक्ति बनना ही होगा। 1972 में उन्होंने मौखिक रूप से परमाणु बम कार्यक्रम को हरी झंडी दे दी। सेठना ने कहा, “हमें 18 महीने दीजिए।” उस समय परीक्षण के लिए 20 किलो प्लूटोनियम की आवश्यकता थी।
भारत ने कनाडा से प्लूटोनियम प्राप्त किया था, जो पूर्णिमा रिएक्टर के लिए उपयोग किया जाता था, लेकिन बाद में इसका प्रयोग बम निर्माण के लिए किया गया। 1973 तक अधिकांश तकनीकी समस्याएं सुलझ चुकी थीं।
पोखरण: जहां धरती कांपी
परमाणु परीक्षण के लिए राजस्थान के पोखरण को चुना गया। भाभा रिसर्च सेंटर के निदेशक राजा रमन्ना के अनुसार, यह इलाका जनसंख्या रहित और भौगोलिक दृष्टि से उपयुक्त था।
खेती में लगे खेतोलाई गांव के किसानों से ज़मीन चार रुपए बीघा में खरीदी गई थी। जब विरोध बढ़ा तो मुआवजा बढ़ाकर 20 रुपए बीघा कर दिया गया।
जोधपुर स्थित 61वीं रेजीमेंट को 107 मीटर गहरे शाफ्ट की खुदाई का काम सौंपा गया। सेना को बताया गया कि यह भूगर्भीय प्रयोग के लिए है। एक समय खुदाई के दौरान पानी निकल आया, लेकिन वैज्ञानिकों को सूखा कुआं चाहिए था। अंततः खेतोलाई में एक उपयुक्त शाफ्ट तैयार किया गया।

सीक्रेट मीटिंग्स और सलाहकारों की आपत्तियाँ
परीक्षण से पहले अप्रैल 1974 में एक गोपनीय बैठक हुई। इसमें पीएन हक्सर, पीएन नाग चौधरी, एचएन सेठना, राजा रमन्ना और कुछ अन्य वरिष्ठ शामिल थे। नाग चौधरी ने परीक्षण का विरोध किया और पश्चिमी देशों की संभावित प्रतिक्रियाओं की चेतावनी दी। लेकिन रमन्ना ने दृढ़ता से कहा कि भारत को एटम बम क्लब में शामिल होना चाहिए।
इंदिरा गांधी ने अंतिम निर्णय लिया और कहा, “हमें परीक्षण करना ही होगा।” इसके लिए 18 मई 1974, बुद्ध पूर्णिमा का दिन चुना गया और ऑपरेशन का नाम रखा गया – स्माइलिंग बुद्धा।
तैयारियां और अंतिम चरण
टेस्ट के लिए प्लूटोनियम बॉल और ट्रिगर मुंबई से जोधपुर होते हुए पोखरण भेजे गए। कुछ उपकरण सेना के काफिले के साथ बाय रोड लाए गए। शाफ्ट में सभी जरूरी यंत्रों को 14 मई तक फिट कर दिया गया और उसे रेत से भर दिया गया।
15 मई को सेठना दिल्ली पहुंचे और इंदिरा गांधी को जानकारी दी: “अब पीछे हटने का विकल्प नहीं है।” इंदिरा ने कहा, “आगे बढ़िए, डर कैसा?”
निर्णायक दिन: 18 मई 1974
उस दिन सुबह से ही तापमान अधिक था। वैज्ञानिकों की टीम परीक्षण स्थल से कुछ किलोमीटर दूर मचान पर निगरानी कर रही थी। जब सब कुछ तैयार हुआ तो उलटी गिनती शुरू की गई।
लेकिन जैसे ही ट्रिगर दबाया जाना था, बिजली सप्लाई में तकनीकी खामी आ गई। वैज्ञानिक दस्तीदार ने खतरे के बावजूद फैसला लिया – “रुकेंगे नहीं।” उन्होंने ‘लाल बटन’ दबाया।
बटन दबाने से पहले वैज्ञानिक नागपट्टिनम संबाशिव वेंकटेशन विष्णु सहस्रनाम का जाप कर रहे थे। परीक्षण में ईश्वर का नाम भी जुड़ा था।
विस्फोट और ‘रेत का पहाड़’
बटन दबाने के बाद कुछ सेकंड तक कुछ नहीं हुआ। सभी चिंतित हो गए। फिर एक मिनट बाद, पोखरण की रेत हवा में उड़ती नजर आई। एक विशाल रेत का पहाड़ आसमान की ओर उठा। भारत सफल हुआ था।
निष्कर्ष
18 मई 1974 को भारत ने पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण करके दुनिया को चौंका दिया। यह वैज्ञानिक कौशल, राजनीतिक संकल्प और राष्ट्रीय सुरक्षा की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम था। ‘स्माइलिंग बुद्धा’ सिर्फ एक ऑपरेशन नहीं, भारत की रणनीतिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन गया।
source -Dainik Bhaskar (India’s first nuclear test)
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