
भारत-पाक युद्ध में चीन की भूमिका- आर्थिक और रणनीतिक संतुलन की कोशिश
पाकिस्तान और पाकिस्तान के प्रशासित कश्मीर में भारत द्वारा किए गए हमलों के बाद दोनों देशों के बीच तनाव गहराता जा रहा है। इस घटनाक्रम को लेकर वैश्विक प्रतिक्रिया सामने आ रही है, जिसमें चीन की प्रतिक्रिया भी अहम है।
चीनी विदेश मंत्रालय ने भारत की कार्रवाई को “अफसोसजनक” करार दिया और मौजूदा हालात को लेकर “गंभीर चिंता” जताई है। मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, “भारत और पाकिस्तान दोनों पड़ोसी देश हैं और हमेशा रहेंगे। वे दोनों चीन के भी पड़ोसी हैं। चीन हर प्रकार के आतंकवाद का विरोध करता है।”
चीनी सरकार ने दोनों देशों से संयम बरतने और ऐसी किसी भी कार्रवाई से बचने की अपील की है, जिससे क्षेत्र की स्थिति और बिगड़ सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन पाकिस्तान में भारी निवेश के चलते किसी भी अस्थिरता को स्वीकार नहीं करना चाहेगा।
पाकिस्तान में चीन का निवेश और रणनीतिक योजनाएं
2005 से 2024 के बीच चीन ने पाकिस्तान में करीब 68 बिलियन डॉलर का निवेश किया है। इसमें चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव जैसी परियोजनाएं शामिल हैं। इन परियोजनाओं के माध्यम से चीन मध्य एशिया तक सड़क मार्ग से पहुंच सुनिश्चित करना चाहता है।
बेनेट यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. तिलक झा कहते हैं, “इस क्षेत्र में बढ़ता तनाव चीन के लिए प्रतिकूल है। अगर स्थिति अस्थिर होती है, तो उसका सीधा असर चीन की परियोजनाओं और निवेश पर पड़ेगा।”
चीन-पाकिस्तान संबंधों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
पाकिस्तान और चीन के राजनयिक संबंध 1951 में शुरू हुए थे। 1963 में सीमा विवाद सुलझाने के बाद दोनों देशों के बीच संबंध गहरे हुए। वर्षों से दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग और रणनीतिक साझेदारी बनी रही है।
पश्चिमी देशों से भारत की नज़दीकी बढ़ने के साथ ही पाकिस्तान का झुकाव चीन की ओर बढ़ता गया। चीन ने पाकिस्तान को हथियार दिए लेकिन कभी भारत के खिलाफ युद्ध में खुला समर्थन नहीं किया। चीन ने पाकिस्तान को FATF जैसी संस्थाओं के प्रतिबंधों से बचाने में भी सहायता दी।
भारत और चीन के बीच संतुलन की रणनीति
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर आर. वरा प्रसाद का कहना है कि चीन भारत और पाकिस्तान के बीच किसी प्रकार के युद्ध की स्थिति नहीं चाहता, क्योंकि इससे उसके क्षेत्रीय और वैश्विक हित प्रभावित होंगे। अमेरिका के साथ पहले से व्यापारिक तनाव झेल रहे चीन के लिए भारत के साथ तनाव और चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
वह कहते हैं, “चीन का झुकाव अपने आर्थिक हितों की तरफ़ अधिक होता है और वह किसी भी विवाद में फंसने से बचता है। यही वजह है कि वह पाकिस्तान के साथ खड़ा जरूर होता है लेकिन युद्ध जैसी स्थिति में हस्तक्षेप नहीं करता।”
डॉ. तिलक झा कहते हैं कि चीन अपने शिनजियांग प्रांत में स्थिरता चाहता है, जो पाकिस्तान और भारत से सटा हुआ है। यह तभी संभव है जब पाकिस्तान में चीन की परियोजनाएं सफलतापूर्वक चलें। भारत इन परियोजनाओं का विरोध करता रहा है, इसलिए चीन नहीं चाहता कि भारत का विरोध और बढ़े।
द्विपक्षीय व्यापार और चीन के आर्थिक हित
2024 में चीन और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय व्यापार 23.1 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। चीन का पाकिस्तान को निर्यात 20.2 बिलियन डॉलर रहा, जबकि पाकिस्तान से आयात घटकर 2.8 बिलियन डॉलर रह गया। चीन पाकिस्तान को सबसे अधिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, स्मार्टफोन, मशीनरी, और स्टील उत्पादों का निर्यात करता है।
डॉ. झा कहते हैं, “जब आप किसी देश से इतने बड़े स्तर पर व्यापार करते हैं तो वहां की स्थिरता आपके लिए आवश्यक हो जाती है।”
प्रोफेसर प्रसाद के अनुसार, पाकिस्तान में पहले ही चीनी नागरिकों की सुरक्षा को लेकर चिंताएं हैं। यदि भारत-पाक के बीच तनाव और बढ़ता है, तो चीन की मौजूदा और भविष्य की परियोजनाएं भी संकट में आ सकती हैं।
रक्षा साझेदारी और सामरिक सहयोग
चीन और पाकिस्तान संयुक्त सैन्य अभ्यास करते हैं और पाकिस्तान बड़ी संख्या में आधुनिक हथियार चीन से खरीदता है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट बताती है कि पिछले पांच वर्षों में पाकिस्तान के 81% हथियार चीन से आए हैं। इनमें PL-15 और SD-10 जैसी आधुनिक मिसाइलें शामिल हैं, जो लंबी दूरी तक लक्ष्यों को भेदने में सक्षम हैं।
पहलगाम हमले के बाद बीबीसी उर्दू से बातचीत में पाकिस्तान की पूर्व राजनयिक तसनीम असलम ने कहा था कि चीन को खाड़ी देशों तक पहुंच के लिए पाकिस्तान की ज़रूरत है। इसलिए चीन के लिए जरूरी है कि क्षेत्र में शांति बनी रहे।
चीन की रणनीति: विवाद से दूरी और स्थिरता की वकालत
डॉ. तिलक झा कहते हैं, “अगर अस्थिरता रही तो चीन की परियोजनाओं से अपेक्षित लाभ नहीं मिल सकेगा, चाहे वे पूरी ही क्यों न हो जाएं। ग्वादर पोर्ट का उदाहरण सामने है—जब तक क्षेत्र में शांति नहीं होगी, उसका उपयोग सीमित रहेगा।”
प्रोफेसर वरा प्रसाद का कहना है कि चीन हमेशा संयम बरतने की अपील करता है और किसी भी सैन्य टकराव से बचने की नीति पर चलता है। अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव के चलते वह भारत के साथ नया विवाद नहीं चाहता।
तीनों देशों – भारत, पाकिस्तान और चीन – के बीच प्रतिद्वंद्विता के बावजूद यह स्पष्ट है कि क्षेत्रीय अस्थिरता से सभी को नुकसान होगा। चीन के लिए आर्थिक और रणनीतिक स्थिरता प्राथमिकता है, और यही कारण है कि वह हर स्तर पर संतुलन बनाए रखने की कोशिश करता है।
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