
50 Years Of Emergency-:
“इंदिरा गांधी इस्तीफा दो!”—ये नारा लगाते हुए रायपुर की सड़कों पर एक 15 साल का किशोर दौड़ रहा था। उसका नाम था जयंत तापस। जैसे ही पुलिस ने उसे देखा, गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।
यह कहानी है 1975 में लगे आपातकाल की, जब देशभर में सेंसरशिप, गिरफ्तारियों और अत्याचारों का अंधकार छाया हुआ था। 25 जून 2025 को आपातकाल के 50 साल पूरे हो रहे हैं और इस मौके पर हम लाए हैं रायपुर की जेल में पहली बार हुए लाठीचार्ज और छत्तीसगढ़ के सबसे छोटे मीसाबंदी की आंखों देखी कहानी।
15 वर्षीय मीसाबंदी: जयंत तापस की जुबानी
रायपुर के जवाहर नगर निवासी जयंत तापस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए परिवार से हैं। उन्होंने बताया—
“26 जून 1975 को जब एमरजेंसी लगी, मेरी उम्र सिर्फ साढ़े 15 साल थी। हाथ में पोस्टर लेकर मैं ‘इंदिरा सरकार मुर्दाबाद’ के नारे लगाते हुए सड़क पर निकला। संघ के लोगों की गिरफ्तारी के विरोध में हम प्रदर्शन कर रहे थे।”
जयंत को बैजनाथपारा के पास पुलिस ने पकड़ा, सिटी कोतवाली में रखा और फिर रायपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया।
“डर लग रहा था कि क्या होगा, कितने दिन रहना पड़ेगा कोई नहीं जानता। एक दिन तो ऐसा हुआ कि जेल का खाना फेंक दिया गया और सभी कैदियों को पीटा गया। उस रात किसी ने खाना नहीं खाया।”
वे 35 दिन जेल में बंद रहे, कोर्ट ने कम उम्र को देखते हुए उन्हें रिहा कर दिया।
रायपुर जेल में पहली बार हुआ था लाठीचार्ज
सुहास देशपांडे, रायपुर के डंगनिया निवासी और तत्कालीन राजनीतिक कैदी, बताते हैं:
“1 जनवरी 1976 को रायपुर जेल के अंदर पहली बार क्रूर लाठीचार्ज हुआ। सभी मीसाबंदी कैदी एक जगह इकट्ठा थे, पुलिस ने बर्बरता से पीटा। मुझे भी लाठी लगी थी। भिलाई के कल्याण सिंह के दोनों पैर तोड़ दिए गए, प्रभाकर राव देवस्थले का सिर फोड़ दिया गया।”
कोई मीडिया रिपोर्ट नहीं कर सकता था, सेंसरशिप थी। सबकुछ चुपचाप सहना पड़ता था।
जासूसी से बचने के लिए नेताओं ने बदले भेष
सुहास देशपांडे ने बताया कि संघ के नेता भेष बदलकर जेलों में अपने साथियों से मिलने आते थे।
“कोई बाल बढ़ा लेता था, कोई कुर्ते की जगह शर्ट-पैंट पहन लेता था। बिलासपुर के केशवलाल गोरे, जो अपना नाम गोरेलाल सोनी बताकर आते थे, सोने की चेन और सुनार की टोपी पहनते थे ताकि उन्हें व्यापारी समझा जाए।”
इंटेलिजेंस के लोग घरों के बाहर निगरानी करते थे, इसीलिए हर मुलाकात गोपनीय होती थी।
जब नसबंदी डर का पर्याय बनी
जयंत तापस ने बताया कि:
“हर कोई डरा हुआ था। कोई नहीं जानता था कि अगला नंबर किसका होगा। सरकार ने ज़बरदस्ती नसबंदी का अभियान शुरू किया था। 70 साल के बुज़ुर्ग को भी पकड़कर ले जाते थे। चाय की दुकानों पर राजनीतिक चर्चा बंद हो गई थी।”
आपातकाल का पाठ, आज की पीढ़ी के लिए ज़रूरी
अब जब मीसाबंदी सहायता राशि दी जा रही है, जयंत और सुहास दोनों चाहते हैं कि नई पीढ़ी को इस दौर की जानकारी हो।
“राज्य सरकार को चाहिए कि एमरजेंसी को स्कूल-कॉलेज के पाठ्यक्रम में शामिल करे, ताकि लोकतंत्र का मूल्य युवा समझ सकें।”
आपातकाल कैसे और क्यों लगा?
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12 जून 1975: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द किया।
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25 जून: जयप्रकाश नारायण ने रैली में इंदिरा से इस्तीफा मांगा।
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26 जून की सुबह: इंदिरा गांधी की घोषणा—”राष्ट्रपति ने आपातकाल घोषित किया है।”
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मीसा कानून और डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट के तहत 1 लाख से अधिक लोग गिरफ्तार।
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19 जनवरी 1977: आपातकाल समाप्त।
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16 मार्च 1977: लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी और संजय गांधी की हार, मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।
“संविधान की हत्या को कभी भुलाया नहीं जा सकता,
क्योंकि जब लोकतंत्र पर आंच आती है, तब इतिहास खून के आँसू रोता है।”
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